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अस्तित्व और अहिसा
क्या गरिष्ठ भोजन अधिक किया ? उसने कहा-नहीं, नहीं ! ऐसी बात नहीं है। पेट का दर्द हुआ है ज्यादा खाने के कारण किन्तु वह इस सचाई को स्वीकार नहीं करता। वह पचास विकल्प प्रस्तुत कर देता है पर इस बात को स्वीकार नहीं करता-मैंने ज्यादा खाया है। यह है दोहरी मूर्खता--ज्यादा खाना और उसे स्वीकार न करना। खतरनाक है मूर्छा
___व्यक्ति अपने बालपन के कारण दोहरी मूर्खताएं करता रहता है । जब तक जीवन में असंयम है, चित्तशुद्धि के प्रति अजागरूकता है तब तक दोहरी मूर्खता को मिटाया नहीं जा सकता। जो बाल होता है, उसमें समझदारी नहीं होती। एक बालपन होता है समझदारी के अभाव में और एक बालपन होता है मूर्छा के कारण । बच्चा जो नादानी करता है, वही नादानी एक आदमी नासमझी या मूर्छा के कारण करता है। एक बच्चा नादानी करता है समझ की अपरिपक्वता के कारण। एक मूर्ख आदमी नादानी करता है मूर्खता के कारण। जिसमें ज्ञान नहीं होता, समझ नहीं होती, वह मूर्ख होता है। एक समझदार आदमी नादानी करता है मूर्छा के कारण । एक व्यक्ति में समझ की परिपक्वता है, ज्ञान भी है किन्तु मूर्छा का ऐसा आवरण आता है कि वह बाल बन जाता है, अज्ञानी बन जाता है। महावीर ने "बाल" शब्द का जिस अर्थ में प्रयोग किया है, उसका संबंध व्यक्ति की मूर्छा से है । एक व्यक्ति सब कुछ जानता है, किन्तु उसमें इतना मोह है, इतनी मूर्छा है कि वह जानता हुआ भी बचपन करता चला जाता है। यह सबसे खतरनाक स्थिति है।
चार उपाय
___बच्चा हमेशा बच्चा नहीं रहता। वह बड़ा होता है तो समझदार बन जाता है। अज्ञानी भी पढ़ लिखकर ज्ञानी बन जाता है। सबसे जटिल है मूर्छा के बचपन को मिटाना । आज दुनिया में अज्ञानी लोगों की संख्या कम है, समझदार मूों की संख्या ज्यादा है। यह कहा जा सकता है - बीस प्रतिशत अज्ञानी हैं, मूर्छामय बचपन जीने वाले अस्सी प्रतिशत हैं। महावीर ने मूर्छामय बचपन को दोहरी मूर्खता कहा है। प्रश्न है-इस बचपन या बालभाव को कैसे मिटाएं ?
संयमः चित्तशुद्धि श्च, बंधः कर्मरसो मतः।
प्रथमं बालभावं यः, त्यजेत् त्यजति सोऽपरम् ॥ संयम, चित्तशुद्धि, बंध और बंध-विपाक के प्रति जागरूकता-बालभाव से मुक्त होने के ये चार उपाय हैं। जो प्रथम बालभाव-मूर्खता को छोड़
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