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दोहरी मूर्खता
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कोई अकरणीय कार्य नहीं करूगा। श्मशान में जाने वाला आदमी सोचता है-व्यक्ति इस संसार में, मोह-जाल में फंसा हुआ है, कब मृत्यु आ जाए, कोई विश्वास नहीं है । एक दिन इस संसार से चले जाना है। ऐसी मति का निर्माण होता है कि मन वैराग्य से भर जाता है। मैथुन के अन्त में, काम भोग के अन्त में शक्ति का जो क्षय होता है, उस समय व्यक्ति की मति बनती है--अब कभी नहीं करूगा। इन तीन अवस्थाओं में जो मति बनती है, यदि वह निरन्तर बनी रहे तो कौन ऐसा व्यक्ति है जो मुक्त न हो जाए ?
प्रवचन श्रवण के समय जो मति बनती है, प्रवचन समाप्त होने के बाद घर या दुकान जाने पर वह मति नीचे दब जाती है। एक प्रज्वलित ज्योति राख के ढेर के नीचे दब जाती है। श्मशान में जो वैराग्य जागता है, वह घर पर स्नान करने के साथ-साथ धुल जाता है। काम-भोग के बाद एक ग्लानि का भाव जागता है, मन में एक बार विरक्ति आ जाती है। व्यक्ति कुछ खा-पी लेता है, शक्ति का अर्जन कर लेता है, काम-भोग या मोह का भाव प्रबल बन जाता है, वैराग्य का भाव दब जाता है । स्थायित्व का उपाय
हम धर्म की दृष्टि से विचार करें तो इस मति को स्थायी बनाना जरूरी है। स्थायी बनाने का एक उपाय है-अनुप्रेक्षा, चिन्तन और आत्म निरीक्षण । सतत स्मृति की जो बात कही गई, स्मृति प्रस्थान या भावक्रिया की जो बात कही गई, उसका अर्थ है--उस बात को बार-बार दोहराओ, निरन्तर उस बात को ध्यान में रखो, जागरूकता और अप्रमाद में रहो । अप्रमाद का अर्थ है सतत स्मृति । प्रमाद का शाब्दिक अर्थ है विस्मृति । जो बात स्मृति में थी, वह स्मृति से उतर गई, इसका नाम है प्रमाद। स्वयं को एक क्षण भी भूलो मत, यह अप्रमाद है। जिस बात को निरन्तर याद रखेंगे, वह आत्मसात् हो जाएगी। व्यक्ति की मनोवृत्ति
__ आदमी गलती से कब बच सकता है ? महावीर ने कहा-व्यक्ति से गलती हो जाती है। व्यक्ति एक बार गलती करता है, यह मूर्खता है किन्तु वह उसे छिपाने के लिए दूसरी बार गलती करता है, यह दोहरी मूर्खता है। कहा गया-अनाचार का सेवन मत करो । व्यक्ति अनाचार का सेवन कर लेता है, यह उसकी पहली मूर्खता है और कोई इस बारे में पूछता है, तो वह अस्वीकार कर देता है, यह उसकी दूसरी मूर्खती है। आचार्य भिक्षु ने नवबाड़ में व्यक्ति की इस मनोवृत्ति का सुन्दर चित्रण किया है—किसी व्यक्ति के पेट में दर्द हो गया। उसने वैद्य को दिखलाया। वैद्य ने पूछा-क्या भोजन ज्यादा किया ?
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