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दोहरी मूर्खता
आचार्य भिक्षु से किसी ने पूछा---गुरुदेव ! आदमी नीचे क्यों जाता है ? डूबता क्यों है ? आचार्य भिक्षु ने कहा-वह भारी है इसलिए नीचे जाता है, डूबता है।
जो हल्का होता है, वह ऊपर आता है। जो भारी होता है, वह नीचे जाता है। आचार्य भिक्षु ने उदाहरण की भाषा में कहा-पैसा पानी में डालो, वह डूब जाएगा। पैसे की कटोरी बनाओ, उसमें पैसा डाल दो, वह तर जाएगा। पैसे को नया आयाम मिला, उसकी कटोरी बन गई, वही पैसा तर गया। जैसे-जैसे चित्त भारी होता है वैसे-वैसे वह नीचे जाता है। चित्त को नया आयाम दें, उसे हल्का बना दें, चित्त ऊपर आ जाएगा, तर जाएगा। केवल वही नहीं, वह अपने साथ दूसरों को भी तार देगा। जरूरत है पैसे को कटोरी के रूप में बदलने की, जरूरत है चित्त और चेतना को नया आयाम देने की। बुद्धि और आचरण
आदमी के प्रत्येक आचरण के पीछे उसकी बुद्धि होती है। जैसी बुद्धि होती है वैसा ही आचरण होता है। समस्या यह है—बुद्धि एक समान नहीं रहती इसीलिए आदमी कभी समझदारी का काम करता है तो कभी-कभी मूर्खता का काम भी कर देता है। ऐसा भी कोई नहीं है, जिसे समझदार कहा जा सके और ऐसा भी कोई नहीं है, जिसे मूर्ख कहा जा सके। समझदार अपने जीवन में मूर्खता का और मूर्ख अपने जीवन में समझदारी का काम करता रहता है । इसका कारण है बुद्धि और मति का परिवर्तित होते रहना। एक संस्कृत कवि ने लिखा
पुराणान्ते श्मशाने च, मैथुनान्ते च या मतिः।
सा मतिः सर्वदा चेत् स्यात्, को न मुच्येत बंधनात् ॥
धर्मकथा के बाद, शमशान में और मैथुन के बाद जो मति रहती है यदि वह मति सदा बनी रहे तो कौन व्यक्ति बंधन से मुक्त न हो जाए ? मार्मिक बात
मुक्ति के संदर्भ में कवि ने बहुत मार्मिक बात कही है। जब व्यक्ति प्रवचन सुनता है तब प्रवचन के अंत में जो मति बनती है, पवित्र बुद्धि जागती है. उससे व्यक्ति के मन में वैगग्य आ जाता है। वह सोचता हैअब
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