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अस्तित्व और अहिंसा
मोहगर्भ-जिसके प्रति गहन आसक्ति है, उसका वियोग होने पर ज्ञानगर्भ-आंतरिक ज्ञान का प्रस्फुटन होने पर
दुःखगभं मोहगभं, ज्ञानगर्भमनुत्तरं । वैराग्यं त्रिविधं प्रोक्तं, ज्ञानिभिः परमषिभिः ॥
अकवाय
भीतर वह है, जो उपशान्त है। जो कषाय से प्रज्वलित है वह बाहर है । महावीर ने कहा--जो त्रिविद्य है, तीन विद्याओं को जानने वाला है, वह कषाय की अग्नि से प्रज्वलित न बने । वह उस आग को बुझाता रहे, शान्त करता रहे । जो कषाय से प्रज्वलित होता है, वह बाहर चला जाता है। गुस्से में आए हुए व्यक्ति के लिये कहा जाता है---यह अपना आपा खोया हुआ है। अभी इससे बात मत करो। इसे होश नहीं है, अपना भान नहीं है। जब शान्ति हो जाए, तब बात करना । भीतर जाने का अर्थ है कषाय का उपशान्त होना। निष्कर्ष की भाषा
___ भीतर-बाहर की इस चर्चा को हम संक्षेप में इस प्रकार प्रस्तुत कर सकते हैं
प्रमत्तो वंचको दृष्टासक्तः प्रज्वलिताशयः । दुःखं परकृतं जान् बहिस्तिष्ठति मानवः ।। अप्रमत्तोऽवञ्चकश्च, दृष्टासक्तः शमं गतः।
दुःख आरंभजं जानन् अंतस्तिष्ठति मानवः ॥ जो मनुष्य प्रमत्त है, वंचक है, दृष्ट में आसक्त है, जिसके कषाय प्रज्वलित हैं, जो दुःख को परकृत मानता है, वह बाहर रहता है।
जो अप्रमत्त है, अवंचक है, दृष्ट में आसक्त नहीं है, जिसके कषाय उपशान्त हैं, जो दुःख को आरंभ-मूलक मानता है, वह अपने भीतर रहता है।
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