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कोन भीतर : कौन बाहर
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नहीं, यह है निर्वेद । जो दृष्ट है, दिखाई दे रहा है, उसके साथ संबंध स्थापित न करना निर्वेद है । इसका अर्थ है-पदार्थ में आसक्त न बनें। जो व्यक्ति दृष्ट के साथ निर्वेद करता है, वह भीतर चला जाता है। जो दृष्ट से जुड़ जाता है, वह बाहर ही बाहर रहता है ।। अदृष्ट के प्रति आस्था जागे
समस्या यह है-अदृष्ट के प्रति विश्वास पैदा नहीं होता, आस्था नहीं जगती । धार्मिक लोगों की आस्था अदृष्ट के साथ जुड़ी हुई है, यह कहना भी बहुत कठिन है । ऐसे व्यक्ति विरल हैं, जिनकी अदृष्ट के साथ आस्था जुड़ी हुई है। यदि अदृष्ट के साथ आस्था जुड़ जाए तो सारा जीवन बदल जाए। व्यक्ति की आस्था पदार्थ के साथ जुड़ी हुई है। अनेक व्यक्ति इसलिए धर्म करते हैं कि धन मिले, परिवार में सुख-शान्ति रहे, वैभव मिले, पुत्र मिले। धर्म की धारणा भी पदार्थ के साथ जुड़ गई। किसी व्यक्ति को यह पता चल जाए--अमुक मुनि महाराज वचन सिद्ध हैं, उनका हर वचन सत्य बनता है। लोग उनके पीछे लग जाते हैं। वे यह नहीं सोचते--- उनका धर्म क्या है ? तत्त्व क्या है ? परम्परा क्या है ? ये सारी बातें गौण हो जाती हैं। जिससे कुछ भौतिक आंकाक्षा ही पूति की संभावना दिखाई देती है, उसके प्रति श्रद्धा जुड़ जाती है। व्यक्ति को धन क्या मिलता है, परमात्मा मिल जाता है । यह एक तथ्य है----आत्मा और परमात्मा के प्रति आस्था रखने वाले लोग ढूंढने पर भी मुश्किल से मिलेंगे किन्तु धन को परमात्मा मानकर आस्था रखने वाले लोगों की कमी नहीं हैं। कभी-कभी प्रश्न उठता है--परमात्मा धन है या कोई और ? अदृष्ट है आत्मा और परमात्मा, दृष्ट है सारा जगत् । जो दिखाई दे रहा है, वह बड़ा है या जो दिखाई नहीं दे रहा, वह बड़ा है ? अदृष्ट के प्रति आस्था कैसे जागे ? यह एक गंभीर प्रश्न है। वैराग्य : उपलब्धि के हेतु
___ इस समस्या के संदर्भ में महावीर ने कहा-दिठेहि निव्वयं गच्छेज्जा दृष्ट में निर्वेद करो। निर्वेद करने वाला व्यक्ति ही भीतर प्रवेश पा सकता है। जब तक दृष्ट के प्रति निर्वेद नहीं होता तब तक व्यक्ति समुद्र के किनारे बैठा लहरों को गिन सकता है, समुद्र की गहराई में छिपे रत्नों को नहीं पा सकता। जो दृष्ट के साथ जुड़ा हुआ है, वह प्रवंचना करना भी जानता है, ठगाई करना भी जानता है। उसका लक्ष्य होता है-जैसे तैसे पदार्थ को बटोरा जाए। वह अपने भीतर कैसे जा सकता है ? अपने घर में जाने का अर्थ है--निर्वेद को पाना, वैराग्य को उपलब्ध होना। वैराग्य तीन प्रकार से उपलब्ध होता है
दुःखगर्भ-दुःख के पैदा होने पर
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