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प्रवचन २३ |
संकलिका
• आवोलए पवीलए निप्पीलए जहित्ता पुव्वसंजोगं हिच्चा उवसमं ।
(आयारो ४/४०) ० जस्स गं भिक्खुस्स एवं भवति-से गिलामि च खलु अहं इमंसि समए इमं शरीरगं अणुपुव्वेण परिवहित्तए, से आणुपव्वेणं अभिनिटवुडच्चे ।
(आयारो ८/१०५) ० मुनि जीवन : तीन भूमिकाएं • आपीड़न-चौबीस वर्ष
प्रपीड़न--बारह वर्ष निष्पीड़न-बारह वर्ष • आपीड़न : अल्प पीड़न ० पहली भूमिका
श्रुत ज्यादा : तप कम • दूसरी भूमिका
देशाटन, धर्मप्रचार, अध्यापन आदि ० ऋण-मुक्ति का समय ० तीसरी भूमिका
तपस्या-साधना मुख्य, श्रुत गौण ० भूमिका निर्धारण का उद्देश्य
ज्ञान की साधना संघ की सेवा
अपनी साधना, अपना कल्याण ० गृहस्थ जीवन : तीन भूमिकाएं-- विद्यार्थी जीवन की भूमिका गृहस्थ जीवन की भूमिका
गृहत्याग की भूमिका ० नई जीवन पद्धति का दर्शन
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