________________
समाधि का मूल्य
क्या संस्कारों को क्षीण किया जा सकता है ? वत्तियों को क्षीण किया जा सकता है ? मौलिक मनोवृत्तियों का परिष्कार किया जा सकता है ? ये कुछ प्रश्न हैं, जिनका उत्तर मनोविज्ञान के पास नहीं है। मनोविज्ञान ने मन का अध्ययन किया किन्तु मन से परे जो आत्मा है, वह कभी उसके अध्ययन का विषय नहीं बना, इसीलिए कुछ प्रश्न उसके लिए अबूझे बने हुए हैं। प्राचीन काल के दार्शनिकों ने मन और बुद्धि से परे जाकर आत्मा की खोज की, आत्मा का अध्ययन किया। अरस्तु, सुकरात, प्लेटो आदि-आदि यूनानी दार्शनिकों ने आत्मा पर गहरा अनुशीलन किया। हिन्दुस्तान में महावीर, सांख्य तथा वेदान्त के आचार्यों ने आत्मा पर बहुत काम किया । मंजिल है आत्मा
___ हमारी अन्तिम मंजिल है आत्मा । जो धार्मिक है, आत्मवादी है उसका गंतव्य है आत्मा को जानना, आत्मा को उपलब्ध होना। किन्तु उस तक पहुंचने की यात्रा बहुत लम्बी है । पहले हम शरीर को पार करें, उसके बाद मन और बुद्धि को पार करें । इतना होने के बाद कहीं आत्मा की बात समझ में आती है । आत्मा को समझने के बाद जीवन का दर्शन बदलता है, दृष्टिकोण बदलता है । यह बात समझ में आती है जो पुराने संस्कार हैं, वृत्तियां हैं, उनका उन्मूलन किया जा सकता है । महावीर ने कहा-आग लकड़ियों को जलाती है । लकड़ी गीली होती है तो जलने में थोड़ा समय लगता है और लकड़ी सूखी होती है तो वे तत्काल जल जाती हैं । जो व्यक्ति आत्म-समाधि को प्राप्त हो गया, वह अनासक्त है, उसके कहीं भी स्नेह का लेप अवशेष नहीं है । ऐसा व्यक्ति कर्म को जला डालता है, संस्कारों को समाप्त कर देता है। संस्कारों को वही व्यक्ति समाप्त कर सकता है, जो आत्म-समाधि में चला जाता है। निर्विकल्प समाधि
__ आदतों को बदलने का, मौलिक मनोवृत्तियों के परिष्कार का सबसे अधिक विश्वसनीय और महत्त्वपूर्ण उपाय है--निर्विकल्प समाधि । जब आदमी शुक्लध्यान की अवस्था में पहुंचता है, एक साथ वृत्तियों का जलना शुरू हो जाता है । शुक्लध्यान की अवस्था निर्विकल्प समाधि की अवस्था है। जब तक चिन्तन और विचार चलता है, तब तक साधना में जितना तेज आना
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org