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प्रवचन २२
| संकलिका
• जहा जुण्णाई कट्ठाई, हव्ववाहो पमत्थति एवं अत्तसमाहिए अणिहे ।
(आयारो ४/३३) ० कुछ अबूझे प्रश्न ० प्रश्न आत्मा की खोज का ० धार्मिक का गंतव्य ० लम्बी है यात्रा ० उपाय है निविकल्प समाधि ० समाधि : वर्तमान प्रयोग ० आत्म-समाधि का स्वरूप ० शुक्लध्यान का परिणाम ० शुक्लध्यानी व्यक्ति की क्षमता ० महावीर की प्रेरणा ० आत्म-ज्ञान : भेद-विज्ञान ० मौलिक मनोवृत्तियां : परिष्कार का मार्य ० साइक-+लोगस : साइकोलॉजी.
साइक—आत्मा लोगस-विज्ञान ० पदार्थ-निरपेक्ष सुख ० निर्विचारता का मूल्य
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