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विलास और क्रूरता
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उतना ही अभाव कम होता है । आदमी में अभाव का घड़ा कभी भरता ही नहीं है । क्योंकि उसके भीतर की पीड़ा को मिटाने के लिए दुनिया के सारे पदार्थ भी पर्याप्त नहीं हैं ।
कौन कर सकता है धर्म ?
प्रमत्त व्यक्ति भी धर्म का आचरण नहीं कर सकता । जो विलासी है, प्रमादी और आलसी है, नशेबाज है, मादक वस्तुओं का सेवन करता है, वह धर्म का आचरण नहीं कर सकता । यदि नशे की आदत एक बार लग जाती है तो उसका छूटना मुश्किल हो जाता है, वह स्नायविक विकृति बन जाती है । हम हीरोइन जैसे बड़े नशे की बात छोड़ दें, जर्दा खाने का नशा भी छूट नहीं पाता । भीतर में ऐसी मांग उठती है, आदमी अपने को रोक नहीं पाता । महावीर ने इस सचाई को प्रस्तुत किया— जो धर्म का आचरण नहीं कर रहे हैं, पीड़ा को भोग रहे हैं, वे निश्चित ही आर्त और प्रमत्त हैं । यह एक तथ्य है- जब जीवन में धर्म नहीं होगा तब विलास बढ़ेगा और उसके साथ क्रूरता भी बढ़ेगी ।
विलास के साथ जुड़ी है क्रूरता
आन्दोलन चल रहे हैं । प्रसाधन सामग्री जुटाने
आज दुनिया में क्रूरता को लेकर कई अनेक देशों में प्राणियों को बुरी तरह मारा जाता है । के उद्देश्य से प्राणियों का संहार होता है । हिन्दुस्तान जैसा धर्म प्रधान देश भी इस समस्या से अछूता नहीं है । विलास की भावना की पूर्ति की पृष्ठभूमि में कितने प्राणियों की आह और करुण चीत्कार होती है ? जितना ऐश्वर्य, विलास और भोग है, उसके साथ क्रूरता जुड़ी हुई है। विलास, ऐश्वर्य और भोग की प्रवृत्ति ने क्रूरता को बढ़ावा दिया है । आज दुनिया में करुणाशील लोगों की संख्या कम है, क्रूर लोगों की संख्या बढ़ रही है । इसका एक मुख्य कारण है- विलास की भावना का प्रबल बनना । बढ़ते हुए विलास के साधनों से भी यह समस्या उग्र बनी है ।
शोषण का कारण
आजकल शोषण पर बहुत चर्चा होती है । क्रूरता के बिना दूसरे का शोषण करना भी संभव नहीं है । जब से साम्यवाद और समाजवाद का सिद्धान्त प्रस्तुत हुआ है तब से यह स्वर बहुत बार उद्घोषित होता रहा है-गरीबों का शोषण मत करो। ऐसा लगता है, आज भी यह स्वर प्रभावी नहीं बन पाया है, शोषण का चक्र बैसा का वैसा चल रहा है। मनुष्य की क्रूरता शोषण की समस्या गंभीर बनी है। जिसमें धर्म का संस्कार नहीं है, उसमें उतना ही ज्यादा असंतोष है, क्रूरता का भाव है । आज भी धन के लिए एक
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