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विलास और क्रूरता
असंतोष की मनोवृत्ति
असंतोष सबसे बड़ा कष्ट है । असंतोष की मनोवृत्ति ही अनेक अपराध और समस्याओं को जन्म दे रही है । मनुष्य को कितना ही मिल जाए किन्तु तृप्ति नहीं मिलती । आज तक कोई तृप्त हुआ नहीं और होने वाला भी नहीं है । बड़े-बड़े सम्राट् और धनपति भी कभी तृप्त नहीं बन सके । आज तक का इतिहास साक्षी है, दुनिया में पदार्थ के साथ जीने वाला एक भी आदमी तृप्त नहीं बना । इस तथ्य का एक भी व्यक्ति अपवाद नहीं मिलता ।
असंतोष विलास की भावना को पैदा करता है । आदमी विलासी इसीलिए है कि उसके भीतर में तृप्ति नहीं है । संतोष का मतलब है तृप्त होना, प्रीति करना । तृप्त होने का एक ही रास्ता है—अपने आपसे प्रीति करना । जिसने अपने आपसे प्रीति नहीं की है, वह कभी संतुष्ट हुआ ही नहीं है । आग की तृप्ति कभी नहीं होती क्योंकि वह ईंधन पर जीती है । उसे हमेशा ईंधन की जरूरत रहती है ।
विलास का अर्थ
काव्यशास्त्र में स्त्री की दस विशेषताएं मानी गई हैं । उनमें एक है विलास । एक विशेष प्रकार की अनुभूति करना या कराना, एक विशेष प्रकार की प्रवृत्ति करना विलास है। प्रत्येक आदमी में यह भावना रहती है वह थोड़ा अलग दिखाई दे, विशिष्ट दिखाई दे, इसीलिए वह साज-सज्जा, प्रसाधन
सामग्री आदि का उपयोग करता है। महिलाएं होठ और नाखून रंगती हैं, अनेक प्रकार की प्रसाधन सामग्री का उपयोग करती हैं । प्रश्न होता हैक्यों ? यह विलास और सुन्दर दिखाई देने की प्रवृत्ति क्यों हैं ? इसका कारण
है—भीतर में अतृप्ति ज्यादा है, असंतोष ज्यादा है । जो व्यक्ति भीतर में संतुष्ट है, उसके मन में दिखाने की बात कभी नहीं आएगी। महावीर ने कभी नहीं सोचा - मैं कैसा लग रहा हूं ? यदि महावीर ऐसा सोचते तो कभी अचेल नहीं बन पाते । जो अपने आपमें परिपूर्ण बन जाता है, समर्थ और तृप्त बन जाता है, रहती ।
उसे बाहरी साज-सज्जा की जरूरत ही नहीं
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