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शाश्वत धर्म
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आंच नहीं आई । आत्मा और पुद्गल-दोनों के संग्राम में अस्तित्व का दीप सदा निष्प्रकंप बना रहा । पारिणामिक भाव ऐसा शक्तिशाली तत्व है, जो अस्तित्व को बनाए हुए है। धर्म है अस्तित्व की अनुभूति
अस्तित्व शाश्वत है। उसकी अनुभूति का नाम है धर्म । धर्म भी शाश्वत है । अस्तित्व की अनुभूति से एक व्यावहारिक बात निकली—यदि तुम्हारा अस्तित्व तुम्हें प्रिय है, उसे तुम बनाए रखना चाहते हो तो दूसरों के अस्तित्व में भी दखल मत दो। इस महान् भावना को समेटे हुए यह स्वर प्रस्फुटित हुआ है-सव्वे पाणा ण हंतव्वा । इस स्वर के पीछे सनातन अस्तित्व की भावना है। इसमें कोई सांप्रदायिक संकीर्णता नहीं है। महावीर ने कहा-संप्रदायवाद अच्छा नहीं है, सांप्रदायिक कट्टरता अच्छी नहीं है। संप्रदाय बुरा नहीं है, बुरी है सांप्रदायिक कट्टरता। महावीर ने जिस धर्म का प्रतिपादन किया, उसमें सांप्रदायिक कट्टरता को कोई स्थान नहीं है। सांप्रदायिक कट्टरता न हो, इसका आदिस्वर महावीर वाणी में खोजा जा सकता है । उन्होंने जिन शाश्वत सत्यों का प्रतिपादन किया, वे आज भी हमारे लिए अनुकरणीय बने हुए हैं ।
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