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अस्तित्व और अहिंसा आत्मा और धर्म में शाश्वतवादिता है। धर्म है आत्मा का अनुभव, शुद्ध चेतना का अनुभव । धर्म का अर्थ इतना ही है, वह जटिल नहीं है किन्तु संप्रदायों ने धर्म को जटिल बना दिया। शाश्वत है पारिणामिक भाव
एक विदेशी भाई ने प्रश्न किया-धर्म क्या है? उसकी सरल परिभाषा क्या है ? महावीर वाणी के आधार पर इस प्रश्न का उत्तर होगा, धर्म है अपने स्वभाव में रहना । आत्मा का जो स्वभाव है, वह अपने उस स्वभाव में रहना चाहती है । उसमें निरन्तर एक आन्दोलन चल रहा है, जिसका नाम है पारिणामिक भाव-मुझे अपने अस्तित्व में रहना है, अपने घर में रहना है। इसी आन्दोलन का नाम है धर्म । वह अपने घर को किराएदारों से खाली करवाने के लिए सतत संघर्षरत रहता है। राग और द्वेष-ये दो ऐसे किराएदार हैं, जो जबरदस्ती अपना अड्डा जमा कर बैठ गए हैं । राग और द्वेष का रहना अधर्म है और इनसे अपने को मुक्त करना धर्म है। शुद्ध अस्तित्व का प्रश्न
योग के आचार्यों ने बार-बार इस बात पर बल दिया-उपादेय कुछ भी नहीं है, लेना कुछ भी नहीं है, सब कुछ छोड़ना ही छोड़ना है। जं विजातीय तत्व भीतर भरे हैं, उन्हें निकालो, निकालते चले जाओ। बचेग केवल शुद्ध अस्तित्व । आचार्य भिक्षु ने कहा-त्याग धर्म है। जैन आचार्य ने लेने की बात को धर्म नहीं कहा। इसका अर्थ है-शाश्वत हमारे भीत बैठा है, जीव का पारिणामिक भाव हमारे भीतर है। कर्म कभी भी उ प्रभावित नहीं कर सकता। पारिणामिक भाव कर्म के अधीन नहीं है, व स्वतंत्र है । यदि पारिणामिक भाव नहीं होता तो कर्म के पुद्गल जीव क अजीव बना डालते । आत्मा आत्मा नहीं रहती, जीव जीव नहीं रहता। उ पुद्गलों ने आत्मा पर कितना ही आक्रमण किया है पर वे कभी आत्मा व अनात्मा नहीं बना पाए । शक्तिशाली तत्त्व
____ कहा जाता है---हिन्दुस्तान पर इतने आक्रमण हुए पर हिन्दु जाति अपने अस्तित्व को बनाए रखा। बहुत लोग आश्चर्य करते हैं हम पर बह आक्रमण किए गए पर हमारी हस्ती को कोई मिटा नहीं सका। इस कारण क्या है ? हिन्दू जाति का अस्तित्व सनातन है या नहीं, यह प्रश्न सकता है किन्तु आत्मा का अस्तित्व शाश्वत है, इसमें कोई संदेह नहीं है इस पर कबसे आक्रमण चल रहा है, इसका कोई पता नहीं है। अनादिका से आत्मा पर पुद्गलों के आक्रमण चल रहे हैं किन्तु इसके अस्तित्व पर के
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