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जो सहता है, वही रहता है
११३.
दूसरा स्रोत
शक्ति का दूसरा स्रोत है-स्वयं को स्वयं का मित्र मानना । जो अपने आपको अपना मित्र नहीं मानता, वह आदमी हमेशा कमजोर रहता है । जो केवल दूसरों को मित्र या शत्रु मानता है, वह हमेशा कमजोर बना रहता है । 'मैं ही मेरा मित्र हूं और मैं ही मेरा शत्रु हूं' यह शक्त-स्रोत के जागरण का सिद्धान्त है। तीसरा स्रोत
शक्ति का तीसरा स्रोत है-स्वयं का निग्रह करना। जो अपनी इन्द्रियों का, आवेशों का, मन की चंचलता का निग्रह करना जानता है, उसमें अपने आप शक्ति का स्रोत फूट पड़ता है। दूसरों को आदेश देना, ताड़ना देना, उलाहना देना-ये काम कोई भी व्यक्ति कर सकता है । इसमें कोई बड़ी बात नहीं है। बड़ा कार्य वह करता है, जो अपना अधिक से अधिक निग्रह करता है और उसके द्वारा ही दूसरों का अनुग्रह या निग्रह करता है। यह बड़ी बात है । महत्त्वपूर्ण सूत्र दिया गया—पहले अपना निग्रह करो, इससे एक बड़ी ताकत पैदा होगी, समस्याओं का समाधान मिलेगा। चौथा स्रोत
शक्ति का चौथा स्रोत है-आदान का निषेध । महत्त्वपूर्ण सूत्र है.----- प्रत्येक बात को सहसा मत स्वीकारो । पहले सोचो----यह क्या है ? क्या मैं इसे स्वीकार करूं ? क्या इसे स्वीकार करना उचित है ? हितकर है ? यह सब सोचकर जो अयोग्य लगे, उसे अस्वीकार कर दो।
___सम्राट विक्रमादित्य एक बार बहुत गरीबी का जीवन जी रहे थे, समस्या से ग्रस्त थे। विक्रमादित्य का मित्र था भट्टमात्र ।"दोनों ने निश्चय किया-हम देशाटन करें, कहीं ऐसा शक्ति का स्रोत खोजें, जिससे निर्धनता मिट जाए। वे एक गांव में कुम्हार के घर पर ठहरे । कुम्हार को उनकी गरीबी पर दया आ गई । कुम्हार ने कहा-हमारे यहां एक रोहणाचल पर्वत है वहां जाकर कोई व्यक्ति सिर पर हाथ रखकर, दीन स्वर में यह कहता है-'हा देव ! हा देव !' और यह कहकर उस पर्वत पर कुदाली की चोट करता है तो मालामाल हो जाता है । मित्र भट्टमात्र ने सोचा--विक्रमादित्य ऐसा करे, यह लगता नहीं है । उसने एक प्लान बनाया । वह विक्रमादित्य से थोड़ा पीछे रह गया । ज्योंहि विक्रमादित्य पर्वत के पास पहुंचे, मित्र ने कहा-विक्रम ! तुम्हारी मां का देहान्त हो गया है। शोक विह्वल विक्रमादित्य ने सिर पर हाथ रखक र कहा--हा देव ! हा देव ! यह कहते हुए उन्होंने कुदाली पत्थर पर गिरा दी। पत्थर टूट गया। पत्थर टूटते ही एक रत्न निकला। विक्रमादित्य यह देखकर स्तब्ध रह गए। भट्टमात्र से रत्न-प्राप्ति का रहस्य
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