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________________ ११२ अस्तित्व और अहिंसा और उसके लिए हम जो प्रयत्न करते हैं, वह है हमारा सामर्थ्य । कौन होता है निग्रंथ अनेक लोग प्रश्न पूछते हैं—क्या महावीर और देवद्धिगणि के साथ सम्पर्क स्थापित किया जा सकता है ? कुन्दकुन्द के साथ सम्पर्क सम्भव बन सकता है ? क्यों नहीं हो सकता ? हमारे भीतर प्रचुर शक्ति है । हमारे भीतर वैक्रिय की एक शक्ति है, आहारक की एक शक्ति है। हमारे मन की शक्ति भी कम नहीं है । मनोवर्गणा के पुद्गल पूरे लोक में फैल जाते हैं पर हम अपनी शक्ति को पहचानते नहीं हैं। शक्ति का होना जितना कठिन नहीं है उतना कठिन है शक्ति को पहचानना, शक्ति के स्रोतों को जानना, शक्ति के स्रोतों का उपयोग करना। प्रश्न पूछा गया-निर्ग्रन्थ कौन होता है ? कहा गया-जो सर्दी और गर्मी-दोनों सहन करता है, वह निग्रंन्थ होता है, मुनि होता है। सर्दी का मतलब है अनुकूलता और गर्मी का मतलब है प्रतिकूलता । मुनि वह होता है, जो प्रतिकूल और अनुकूल परिस्थितियों को सहन करता है। सहन करने के लिए भी शक्ति चाहिए। पहला स्रोत शक्तिशाली ही सहिष्णु बन सकता है। जो सहिष्णु होता है, सहना जानता है वही अपने अस्तित्व को बनाए रख सकता है। अस्तित्व को बनाए रखने के लिए सहना जरूरी है, सहने के लिए शक्तिशाली होना जरूरी है। और शक्तिशाली होने के लिए शक्ति स्रोत को जानना एवं उसका उपयोग होना जरूरी है । शक्ति-स्रोत का रहस्य इन सूत्रों में सहज उपलब्ध होता है सत्ये यस्य धृतिः सिद्धा, मित्रमात्मा निजो ध्रुवम् । निग्रहः स्वात्मना स्वस्य, तस्यास्तित्वं सनातनम् ॥ जिसकी सत्य में धृति सिद्ध हो गई, जिसका आत्मा ही अपना मित्र है, जो अपने द्वारा अपना निग्रह करना जानता है, उसका अस्तित्व शाश्वत है । महावीर ने कहा-शक्ति का एक स्रोत है--सत्य में धृति करना । शक्ति का सबसे बड़ा स्रोत है सत्य में धृति करना । हम नियम को नहीं जानते इसीलिए हमारा सत्य में भरोसा नहीं होता, सत्य के प्रति आस्था ही नहीं जमती । जहां सत्य में धैर्य नहीं होता वहां सहिष्णुता की बात ही सम्भव नहीं होती। कभी-कभी कुछ कार्य नियति के भरोसे छोड़ने पड़ते हैं । यह भी शक्ति का एक स्रोत है। जो आदमी केवल बुद्धि पर ही भरोसा करता है, वह लड़खड़ा जाता है। एक बिन्दु ऐसा आता है जहां यह सोचना पड़ता हैचलो, जैसा होना है, वैसा होगा । इस चिन्तन से व्यक्ति में ताकत आ जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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