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जो रहता है, वही रहता है
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बनती । हम शक्ति स्रोतों की खोज करें। हमारे अध्यात्म के आचार्यों ने बहुत खोजें की थीं, वे चाबिर्या आज भी प्राप्त हो सकती हैं पर हम भूल गए हैं कि वे कहां पड़ी हैं ?
कहां है शक्ति का स्रोत
आजकल मस्तिष्क के बारे में बहुत खोजें चल रही हैं । वैज्ञानिकों द्वारा मस्तिष्क के दो केन्द्र खोजें गए हैं। एक है सुख का केन्द्र और दूसरा है - दुःख - विषाद का केन्द्र । बन्दरों पर प्रयोग किया गया। एक बंदर के आनन्द के केन्द्र पर इलेक्ट्रॉड लगा दिया गया । कि वह स्वयं बार-बार अपने आप इलेक्ट्रॉड लगाने बन्दर के दुःख के केन्द्र पर इलेक्ट्रांड लगाया गया, वह उदास - निराश रहने लगा | वैज्ञानिकों ने आनन्द का केन्द्र भी खोज लिया, दुःख का केन्द्र भी खोज लिया । शक्ति के केन्द्र की खोज अभी शेष है ।
उसे इतना आनन्द आया लगा । इसी प्रकार दूसरे
शक्ति : अनेक रूप
हमारे भीतर शक्ति के बहुत सारे केन्द्र हैं । एक आदमी शरीर से बहुत समर्थ होता है और एक आदमी मनोबल से बहुत समर्थ होता है । ध्यान विचार में एक सुन्दर मीमांसा की गई है— उत्साह, पराक्रम, चेष्टा, शक्ति, सामर्थ्य – ये सब शक्ति के ही स्वरूप हैं । शक्ति के अनेक रूप बनते हैं, ये सब उसके वाचक शब्द हैं ।
· उत्साह - ऊर्ध्व लोक वस्तु चिन्ता |
हमारी एक शक्ति का रूप है उत्साह । जब ऊपर की बातों को जानना होता है और उसके लिए शक्ति का जो प्रयोग किया जाता है, उस शक्ति का नाम है— उत्साह
पराक्रम - अधोलोक चिन्ता |
एक व्यक्ति जिस स्थान पर बैठा है, उसे आस-पास की चीजों को जानना है, उसके लिए शक्ति का जो प्रयोग होता है, वह है पराक्रम ।
• चेष्टा - तिर्यग् लोक चिन्ता ।
जब नीचे की चीजों को जानना होता है तब शक्ति का स्वरूप होता है चेष्टा । जहां अन्धकारमय स्थान है, वहां चेष्टा का प्रयोग होता है ।
• शक्ति परम तत्त्व चिन्ता ।
ऊपर को जानना, तिरछी चीज को जानना सरल है किन्तु परम तत्त्व का ज्ञान कठिन है । एक स्थान पर बैठे-बैठे परम तत्त्व को जानना है और उसके लिए जो प्रयत्न किया जाता है, वह है हमारी शक्ति ।
• सामर्थ्य -- सिद्धायतन एवं सिद्धस्वरूप चिन्ता |
निर्णीत स्थान से बैठे-बैठे सिद्धों के साथ सम्पर्क स्थापित करना है।
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