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जो सहता है, वही रहता है
सिद्धांत विकासवाद का
आधुनिक युग को प्रभावित करने वाले दो-चार प्रमुख व्यक्तियों में एक हैं-चार्ल्स डार्विन । उन्होंने इवोल्यूशन का सिद्धान्त, विकासवाद का सिद्धांत प्रस्तुत किया। प्रश्न है—इस दुनिया का विकास कैसे हुआ ? दो सिद्धान्त हैंउत्पत्तिवाद और विकासवाद । इस दुनियां की उत्पत्ति कैसे हुई ? और उसक विकास कैसे हुआ ? इस सन्दर्भ में अनेक दार्शनिकों ने अपने-अपने विचार प्रस्तुत किए किन्तु उन सबमें आअ वैज्ञानिक दृष्टि ने चार्ल्स डाविन मुख्य माने जाते हैं। डार्विन आदि का विकासवाद का सिद्धान्त है---जींस विकास करते-करते यहां तक पहुंचे हैं और वे ही जातियां-प्रजातियां बची हैं, जो अपने आपको फिट करने में सक्षम हुई हैं। जो फिट करने में असक्षम हुई, वे समाप्त हो गई । इस दुनिया में वही व्यक्ति जीवित रहता है, जो सक्षम और शक्तिशाली होता है । जो शक्तिहीन होता है, वह समाप्त हो जाता है, यह विकासवाद की मुख्य अवधारणा है । प्रश्न है शक्ति का
___ शक्ति के बिना कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह सकता । मारने वालों का कहीं अन्त ही नहीं है । एक जीव दूसरे जीव को मार रहा है । एक प्राणी दूसरे प्राणी को मार रहा है। अपने भोजन के लिए भी और बिना मतलव के भी । आक्रामकता, क्रूरता और विनोद के दृष्टिकोण के कारण प्राणी मारे जा रहे हैं । इस स्थिति में अपने अस्तित्व को वही बनाए रख सकता है, जो सक्षम है। जैसे यह बात सृष्टि के विषय में लागू होती है वैसे ही यह नियम आध्यात्मिक जगत् में भी लागू होता है। आध्यात्मिक जीवन में वही व्यक्ति टिकता है, जो सहता है, जो शक्तिशाली होता है। जिसमें शक्ति नहीं होगी वह क्या सहन करेगा ? सहन करना हमारी क्रिया है और उसके पीछे जो सूत्र है, वह है शक्ति । कमजोर आदमी कभी सहन नहीं कर सकता। शक्ति और सहिष्णुता
__ शक्ति और सहिष्णुता—दोनों साथ-साथ जुड़े हुए हैं । हमें खोजना हैशक्ति के स्रोत कहा हैं ? कितने हैं ? 'सहन करो', यह उपदेश बहुत अच्छा है पर कहने मात्र से सहन करने की शक्ति उपलब्ध नहीं होती। जब तक शक्ति के स्रोत नहीं खुल जाते, तब तक सहन करने की बात सम्भव नहीं
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