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________________ प्रवचन १६ | संकलिका ( ० सीओसिणच्चाई से निग्गंथे अरइरइसहे फरुसियं णो वेदेति । (आयारो ३/७) ० सच्चंसि धिति कुव्वह। (आयारो ३/४०) ० पुरिसा ! तुममेव तुमंमित्तं किं बहिया मित्त मिच्छसि । ० पुरिसा ! अत्ताणमेव अभिणिगिझ एवं दुक्खा पमोक्खसि । (आयारो ३/६२,६४) • आयाणं णिसिद्धा सगडब्भि, (आयारो ३/८६) ० उत्साहस्य ऊर्ध्वलोकवस्तुचित्ता, पराक्रमस्य अधोलोक-चिन्ता। चेष्टायाः तिर्यग्लोकचिन्तनम् । शक्तेः सत्व-परमतत्व-चिन्ता । सामर्थ्यस्य सिद्धायतन-सिद्धस्वरूप-चिन्तालम्बनम् । (ध्यान-विचार पृ० ३६) ० उत्पत्तिवाद : विकासवाद ० आनन्द का केन्द्र : दुःख का केन्द्र ० शक्ति के स्रोत सत्य में धृति स्वयं का निग्रह स्वयं से मित्रता आदान का निषेध ० विक्रमादित्य : पुरुषार्थ पर विश्वास ० शक्ति : अनेक रूप : उत्साह-ऊर्ध्व लोक वस्तु चिन्ता पराक्रम-अधोलोक चिन्ता चेष्टा—तिर्यग्लोक चिन्ता शक्ति--परमतत्त्व चिन्ता सामर्थ्य-सिद्धस्थान एवं सिद्धस्वरूप की चिन्ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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