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११४.
अस्तित्व और अहिंसा
सुनकर विक्रमादित्य ने तत्काल वह रत्न जंगल में ऐसे फेंक दिया, मानो कुछ मिला ही नहीं था । विक्रमादित्य ने भट्टमात्र से कहा—विक्रम गरीब रह सकता है पर कभी दीन नहीं बन सकता। सार्थकता का अनुभव
जिस व्यक्ति में यह पराक्रम होता है वह हर किसी बात को जैसे-तैसे स्वीकार नहीं करता। हम दरवाजे को हमेशा खुला न रखें। हर किसी को 'प्रवेश न दें, अपने आप शक्ति का स्रोत उपलब्ध हो जाएगा।
महावीर ने केवल यही नहीं कहा-'निर्ग्रन्थ वह होता है, जो अनुकूलप्रतिकूल बात को सहन करता है किन्तु सहन करने के लिए जो शक्ति का स्रोत चाहिए, उसकी प्राप्ति के सूत्र भी बतलाए । जब आत्मा के अन्दर से शक्ति का स्रोत फूट जाता है, एकाग्रता और संकल्प की शक्ति जाग जाती है तब आदमी सचमुच अपनी अनन्त शक्ति का अनुभव करने लग जाता है, उसमें सहन करने की शक्ति प्रस्फुटित हो जाती है। इसी आधार पर “जो सहता है, वही रहता है" इस सूत्र की सार्थकता का अनुभव किया जा सकता है ।
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