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________________ १०२ अस्तित्व और अहिंसा सर्वोत्तम समाधान अभ्यास का एक सूत्र है-कल्पनाओं का भेदन । आचारांग का महत्त्वपूर्ण सूत्र है--बिधूतकप्पे-कल्पना का भेदन करो, कल्पनाओं का जीवन मत जीओ, व्यर्थ की कल्पनाएं मत करो। दुःख और मानसिक तनाव कल्पना के सहारे पलता है । कल्पना से मुक्त होने का सूत्र है-वर्तमान की अनुपश्यना, वर्तमान का दर्शन । वर्तमान को देखने वाला व्यक्ति अग्रहण का जीवन जी सकता है । यदि वर्तमान को छोड़कर व्यक्ति अतीत की स्मृति में उलझ जाता है, भविष्य की कल्पना में उलझ जाता है तो वह सुख-दुःख के चक्र से कभी मुक्त नहीं हो पाता। सुख या दुःख की कभी कोई घटना घट जाती है। व्यक्ति उसकी स्मृति से दयनीय बन जाता है, पागल बन जाता है। स्मृति और कल्पना से बचने वाला ही अग्रहण की दिशा में बढ़ सकता है। यदि हम ग्रहण न करने का अभ्यास करें, जो ग्रहण हो जाए, उसका रेचन कर दें, उसकी गांठ न बनाएं तो हम द्रष्टा बन सकते हैं, अरति और आनन्द-दोनों से परे जा सकते हैं, दुःख और तनाव से बच सकते हैं। धर्म का शब्द है--आर्तध्यान और आधुनिक शब्द है-मानसिक तनाव । अग्रहण की साधना, ग्रहण न करने का अभ्यास और गृहीत का रेचन करने की वृत्ति का विकास-इस समस्या का सर्वोत्तम समाधान है। इस उपाय को काम में न लेने वाला आर्त्तध्यान या मानसिक तनाव से नहीं बच सकता, अरति और आनंद से ऊपर नहीं उठ सकता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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