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________________ आस्तत्व आर आहसा के साथ तादात्म्य बनाए बिना जीवित मुर्गे का चित्र नहीं बनाया जा सकता। समत्व का जीवन जिए बिना कोई समत्वदर्शी नहीं बन सकता। समत्व का पाठ नहीं, दर्शन करें ___ समत्वदर्शी और समत्वपाठी-ये दो महत्त्वपूर्ण शब्द हैं। तोता पाठ करता है पर मनुष्य तोता नहीं है। उसे समत्व का पाठ नहीं, समत्व का दर्शन करना चाहिए । महावीर ने कहा-जो समत्व का दर्शन या अनुभूति कर लेता है, वह समत्व का पाठ नहीं कर सकता। जब दर्शन और अनुभूति का क्षण उपलब्ध होता है, सारी स्थिति बदल जाती है। हम त्रिविद्य, परमदर्शी और समत्वदर्शी-इन तीनों तत्त्वों को समझे, इनको साक्षात् करने का प्रयत्न करें। इन तत्त्वों को जीवन में उतारने का प्रयत्न करने वाला व्यक्ति पाप कर्म से बचने का प्रयास करता रहेगा और एक दिन उस स्थिति तक पहुंच जाएगा, जहां पाप के बारे में सोचने का कोई अवकाश ही नहीं होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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