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________________ अस्तित्व और हिसा दो प्रमाण श्री देसाई के अन्वेषण का निष्कर्ष था--मंडनमिश्र घबरा गए, उनके श्वास छोटे हो गए, शरीर की गर्मी बढ़ गई। शरीर की गर्मी बढ़ने से माला कुम्हला गई । अपनी इस स्थापना के समर्थन में श्री देसाई ने दो प्रमाण प्रस्तुत किए । पहला स्वयं से संबद्ध था। उन्होंने लिखा- मुझे हार्ट अटैक हुआ था। उस समय मैंने आत्मालोचन किया। मुझे यह निष्कर्ष प्राप्त हुआआदमी हार्ट अटैक से नहीं मरता। आदमी मरता है घबराहट के कारण । घबराहट के कारण उसका श्वास छोटा हो जाता है, शरीर में गर्मी आ जाती है । उन्होंने दूसरा प्रमाण प्रस्तुत किया---इस घटना के बाद मेरे मन में भावना जगी-मुझे श्वास के बारे में कुछ जानकारी करनी चाहिए। संयोगवश मुझे प्रेक्षाध्यान का कुछ साहित्य उपलब्ध हो गया। उसमें एक पुस्तक थी, श्वास प्रेक्षा । मैंने उसमें पढ़ा-~-श्वास की गति बढ़ने से शरीर की गर्मी बढ़ जाती है । इस कथन से मेरी स्थापना को सुदृढ़ आधार मिल गया। अपना अनुभव और श्वास प्रेक्षा-पुस्तक से प्राप्त अनुभव-इन दो प्रमाणों के आधार पर मैं इस सिद्धान्त का समर्थन करता हूं कि मंडनमिश्र की माला का मुरझाना कोई चमत्कार नहीं था, वह छोटे श्वास का परिणाम था । धी देसाई की इस युक्ति-संगत प्रस्थापना को विद्वानों का व्यापक समर्थन मिला। महत्त्वपूर्ण सूत्र इसका नाम है अनुसंधान और आलोचन । जो आलोचना करता है, वह किसी निष्कर्ष पर पहुंचता है। बिना आलोचना और अन्वेषण के किसी सही निष्कर्ष की उपलब्धि नहीं होती। जो घटना घटती है, व्यक्ति उसे भोग लेता है, उसका आलोचन नहीं करता इसीलिए वह घटना के कारणों से अनभिज्ञ बना रहता है । सुख आता है तो सुख भोग लेता है। दुःख आता है तो दुःख भोग लेता है । वह भोगता ही चला जाता है किन्तु यह आलोचना नहीं करता-सुख मुझे क्यों भोगना है ? मुझे दुःख क्यों भोगना है ? क्या मैं भोगने के लिए ही जन्मा हूं ? या और भी कुछ करना है ? आत्मालोचन किए बिना, अपनी वृत्तियों की आलोचना किए बिना कोई भी व्यक्ति सचाई तक नहीं पहुंच सकता । भगवान् महावीर ने आलोचना का महत्त्वपूर्ण सूत्र दिया-पंडिए पडिलेहाए-तुम प्रतिलेखना करो, देखो। जब व्यक्ति प्रतिलेखना करता है, तब वृत्तियों का रेचन करना सहज हो जाता है। रेचन करना सीखें महावीर ने कहा--जो वीर होता है, वह न अरति को सहन करता है, न रति को सहन करता है। मन में कभी अरति आती है तो कभी रति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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