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भेद में छिपा अभेद
गया। वह चढ़ने में स्वतंत्र है। चढ़े या न चढ़े, यह उसकी स्वतंत्रता है किन्तु चढ़ने के बाद नीचे उतरना उनकी परतंत्रता है।
स्वतंत्रता और परतंत्रता मापेक्ष है। एक व्यक्ति खाने में स्वतंत्र है। ज्यादा खाएगा तो अफारा आ जायेगा। उस परिणाम को भोगने में वह परतंत्र है। पेट खगव है, पाचनक्ति अच्छी नहीं है और व्यक्ति ने भारी चीज खा ली। वह उसे खाने में स्वतंत्र है किन्तु उसका परिणाम भोगने में परतंत्र है। आदमी एकांततः न स्वतंत्र है और न परतंत्र।
वतमान आचार का प्रश्न
कुरान को पढ़ते समय ऐसा नहीं लगता - आज जैसा चल रहा है, इस्लाम धर्म वैसा ही है। कुरान में बहुत अच्छी बातें हैं - नीति और आचार का उपदेश है, न्याय और हृदय परिवर्तन का संदेश है- 'किमी के साथ अन्याय मत करो। किसी के साथ जुल्म मत करो। किमी को सताओ मत। सबके साथ मैत्री करो। प्रेम करो। तुम्हें ईश्वर के पास जाना है, वहां न्याय होगा। शरीर पर ममत्व मत करो। यह शरीर छुट जाएगा, नष्ट हो जाएगा। तुम नष्ट नहीं होने वाले हो।' इन सब बातों को सामने रखकर देखें तो ऐसा लगता है - वेदान्त, जैन दर्शन, बौद्ध, कुरान, मांख्य आदि आदि में बहुत निकटता है। इसी आधार पर पश्चिम के लोगों ने कुरान और वेदान्त का तुलनात्मक अध्ययन किया है। कुरान और गीता में वहत समता है इसलिए दादा पेशवा ने गीता का फारसी में अनुवाद कराया। जहां वैदिक दर्शन में स्वप्न, प्रसुप्ति आदि चार अवस्थाएं मानी गई हैं वहां इस्लाम में भी चार अवस्थाएं मानी गई हैं। मांख्य दर्शन का माधना पक्ष है पातंजल योगदर्शन, इस्लाम का साधना दर्शन है मूफी दर्शन। सूफी संतों ने अध्यात्म की दिशा में काफी विकास किया और वह विश्व में काफी प्रभावशाली बना। मूल बात यही है - वर्तमान आचार और कुरान की बातों में काफी अन्तर है। यह मान लेना चाहिए - जैन धर्म के सिद्धान्त और जैन श्रावक के आचार में काफी निकटता है। कहा गया - एक जैन श्रावक के लिए झूठा तोल-माप मर्वथा निषिद्ध है। वह मिलावट नहीं कर सकता। जो झूठा तोल-माप करता है, मिलावट करता है, वह पशु-योनि में जाता है। यह जैन श्रावक
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