SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन धर्म और इस्लाम धर्म की सामान्य आचार-संहिता है और इसका पालन एक जैन श्रावक को करना होता है। तुलनात्मक अध्ययन का अर्थ जहां मूल सिद्धान्त का प्रश्न है वहां उत्तराध्ययन और कुरान को आमने-सामने रखकर देखेंगे तो ऐसा लगेगा अनुभव दो नहीं होता, अच्छाई दो नहीं होती। अन्तर हो सकता है सूक्ष्मता तक जाने में, गहराई तक पहुंचने में। जहां आचार और व्यवहार के स्थूल सिद्धान्त का प्रश्न है वहां अनेक धर्मों में समानता के व्यापक तत्त्व खोजे जा सकते हैं। हमें इस संदर्भ में प्रयत्न भी करना चाहिए। जैन दर्शन का बड़ा उदार दृष्टिकोण रहा है। जैन धर्म में बहुश्रुत वह होता है, जो अपने सिद्धान्तों को भी जानता है दूसरों के सिद्धान्तों को भी जानता है। आचार्य की यह एक विशेषता है कि वह स्वसमय और परसमय दोनों का ज्ञाता होता है। दूसरे धर्मों को जानने का एक लाभ यह होता है कि दृष्टि की संकीर्णता मिट जाती है। अन्यथा आदमी कूपमण्डूक बना रहता है। वह सोचता है सारी अच्छाइयां यहीं हैं । तुलनात्मक अध्ययन से पता चलता है अच्छाइयों का क्षेत्र व्यापक है । सत्य विराट् है । वह सब जगह प्राप्त होता है। सत्य की समझ : प्रशस्त पथ 1 - ― Jain Education International - हम दूसरे धर्मों को जानें लेकिन केवल ऊपरी तौर पर नहीं । सब धर्मों के बारे में मौलिक जानकारी करनी चाहिए। मूल सिद्धान्त क्या है और उसकी तुलना कैसे हो सकती है ? इसका माध्यम बन सकता है नयवाद । नयवाद इतना व्यापक है कि उसमें आग्रह का अवकाश ही नहीं है। हमारी दृष्टि में प्रत्येक धर्म एक नय है । उस नय को समझें । एक व्यापक दृष्टिकोण समझ में आएगा, सचाई के निकट पहुंचने में हमें बहुत सुविधा होगी । तुलनात्मक अध्ययन का अर्थ है सत्य के अनेक मार्गों का व्यापक अवबोध । यह अवबोध सत्य की सही समझ का प्रशस्त पथ है। 1 ८३ For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.003085
Book TitleBhed me Chipa Abhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy