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जैन धर्म और इस्लाम धर्म
नहीं पा सकता। धर्म का जो यह व्यावहारिक पहलू है, वह संगठन या समाज का प्राणतत्त्व होता है। इसकी उपयोगिता का बोध होना वर्तमान युग में अत्यन्त अपेक्षित है। जैन धर्म : परम तत्त्व
धर्म का मुख्य पहलू आध्यात्मिकता है। जैन धर्म आत्मा के लिए समर्पित धर्म है। जब तक आत्मा या परमात्मा के प्रति गहरा अनराग नहीं जगता तब तक काम बनता नहीं है। हमारे सामने एक लक्ष्य है, एक गंतव्य है
और वह है आत्मा। उसके प्रति गहरा लगाव जागे बिना आदमी कहीं टिक ही नहीं पाता। जैन धर्म में आत्मा या आत्मा की शुद्धावस्था-परमात्मा को सबसे ज्यादा महत्त्व दिया गया है। उसके प्रति - अट्ठिमिंजपेमाणुरागरत्ते - अस्थि, मज्जा और रग-रग में अनुरक्ति की बात कही गई है। आत्मा के प्रति पूर्ण समर्पण। जो धार्मिक बना है, उसके लिए केवल आत्मा-परमात्मा के प्रति समर्पण ही श्रेय है। उसका परम आराध्य तत्त्व है आत्मा। इस्लाम धर्म : परम तत्त्व
इस्लाम का परम तत्त्व है - अल्लाह, खुदा, ईश्वर या परमेश्वर। ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण। ईश्वर के लिए, ईश्वर के नाम पर इतना समर्पण, जिसकी कोई सीमा नहीं है। ईश्वर के प्रति कुरान शरीफ में जो आयते हैं, उन्हें पढ़ें तो ऐसा लगेगा - इस्लाम धर्म का आदि बिन्दु या अंतिम बिन्दु कोई है तो वह है खुदा-अल्लाह। अल्लाह के सिवा कोई नहीं। सब कछ समर्पित है उसके लिए। खदा को सर्वज्ञ माना गया है। कहा गया - वह सब जानता है, देखता है, न्याय करता है। करान कहता है - बीच के कोई भी देवता तुम्हारा भला नहीं कर सकते। तुम किसी देवता की शरण में मत जाओ। बहुत मार्मिक भाषा में कहा गया- तुम उन देवताओं की शरण में जाते हो, जो एक मक्खी को भी नहीं बना सकते। क्या कोई ऐसा देवता है, जो एक मक्खी का भी निर्माण कर दे? तुम उस परमात्मा की शरण लो, ईश्वर की शरण लो, जो सब कुछ करने में समर्थ है।
इस्लाम धर्म का सूत्र है - ईश्वर के प्रति निष्ठा। इस्लाम धर्म का
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