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भेद में छिपा अभेद
पारस्परिकता और सौहार्द को जो मूल्य दिया गया है, उससे प्रत्येक आदमी का मन आकृष्ट हो जाता है। सामान्य आदमी तत्व की गहराई में नहीं जाता। वह प्रभावित होता है पारस्परिकता से। समाज में पारस्परिकता है, सौहार्द का संबंध है तो व्यक्ति सहज ही उस ओर खिंचता चला जाएगा। हम एक गृहस्थ की बात छोड़ दें। एक मुनि को भी सौहार्द नहीं मिलता, वात्सल्य नहीं मिलता, पारस्परिकता नहीं मिलती है तो वह भी सोचता है - मैं कहां फंस गया। मेघकमार के साथ ऐसा ही हुआ था। सम्राट् श्रेणिक का पुत्र मेघकुमार महावीर के चरणों में प्रव्रजित हुआ। मुनि जीवन की पहली रात। सोने का स्थान मिला दरवाजे के पास। मध्यरात्रि का समय, कोई मुनि स्वाध्याय के लिए बाहर जा रहा है, कोई ध्यान के लिए बाहर जा रहा है, कोई देह-चिन्ता से निवृत्त होने के लिए बाहर जा रहा है। किसी का पैर मेघकमार से टकरा जाता है, किसी के पैर के प्रहार से मेघकुमार तड़प उठता है। इस स्थिति में नींद का प्रश्न ही नहीं था। उसके लिए वह रात बहुत लम्बी बन गई। तीन प्रहर का समय उसे सौ प्रहर जितना लगने लगा।
त्रियामा शतयामाऽभूत् नानासंकल्पशालिनः।
निस्पृहत्वं मुनीनां तं, प्रतिपलमपीडयत्।। समाज : परस्परता का संबंध
मेघकुमार ने सोचा - यह कैसा समाज? पहले जब मैं गृहस्थ था तब साधु कितना प्यार करते थे। आज कोई पूछता ही नहीं है। जो आता है, ठोकर लगाकर चला जाता है। यह कैसा व्यवहार है? उसका मन विचलित हो गया। विचलित होने का कारण कोई आत्मा की दुर्बलता नहीं थी। संतों का रूखा-सूखा व्यवहार उसके स्नेहिल हृदय को विक्षुब्ध बना गया। सूर्योदय होते ही मेघकुमार महावीर के पास पहुंचा। महावीर को वंदना कर बोला - भगवन्! यह संभालो आपका दिया हुआ साधुत्व। __ समाज में पारस्परिक संबंध का कितना महत्व होता है, संगठन में जड़ाव का होना कितना महत्वपूर्ण है, हम इस सचाई को समझें। ये तत्त्व समाज या संगठन में नहीं होते हैं तो वह संख्या की दृष्टि से विस्तार
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