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स्वीकार करना । दोनों के बीच का मार्ग बताया - मध्यम मार्ग | किन्तु साथ-साथ यह कहने में भी संकोच नहीं होता - दर्शन के क्षेत्र में मध्यम प्रतिपदा की बात नहीं रही। वहां ऐकान्तिक अनित्यवाद को स्वीकार किया। बुद्ध ने आचार के क्षेत्र में बहुत काम किया किन्तु दर्शन के क्षेत्र में बौद्ध धर्म का अवदान बहुत बड़ा नहीं माना जा सकता। बुद्ध के बाद उत्तरवर्त्ती आचार्यों ने दर्शन के क्षेत्र में बहुत बड़ा काम किया है। धर्मकीर्ति, नागार्जुन, वसुबंधु आदि बौद्ध धर्म के महान् आचार्यों ने दर्शन और तर्क के क्षेत्र में कुछ कीर्तिमान स्थापित किए हैं किन्तु बुद्ध के समय में दर्शन का बहुत विकास नहीं हुआ । बुद्ध की देन
भेद में छिपा अभेद
बुद्ध ने शील, समाधि और प्रज्ञा का बहुत विकास किया। आचार के क्षेत्र में चार आर्यसत्य, चार ब्रह्म विहार - मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा- ये वास्तव में बुद्ध की ही देन हैं। पंचशील का विकास बुद्ध ने किया है। जैन धर्म के पंचव्रत और बुद्ध के पंचशील - दोनों में बहुत बड़ा अंतर है। जहां महावीर ने पांच व्रतों में अपरिग्रह को स्थान दिया वहां बुद्ध ने अपरिग्रह का स्पर्श ही नहीं किया । बुद्ध ने मद्यपान का निषेध किया । अहिंसा, सत्य, अचौर्य और ब्रह्मचर्य को व्रत के रूप में स्वीकार किया किन्तु अपरिग्रह को व्रत माना ही नहीं ।
महावीर का अपरिग्रहवाद
हवाई विश्व विद्यालय में एक संगोष्ठी का आयोजन था । उसमें विश्व भर के सैंकड़ों बौद्ध भिक्षु एकत्रित थे। उस संगोष्ठी में आचार्यश्री के प्रतिनिधि भी विशेष रूप से आमंत्रित थे । संगोष्ठी के मध्य एक बौद्ध भिक्ष ने प्रश्न रखा-बुद्ध ने अपरिग्रह के विषय में क्या लिखा है? बौद्ध विद्वानों ने कहा - इस विषय में हमें कोई जानकारी नहीं है। एक बौद्ध भिक्षु बोले- सौभाग्य से हमारे बीच जैनों का एक प्रतिनिधि मंडल उपस्थित है। उनसे यह पूछा जाए - महावीर ने अपरिग्रह के बारे में क्या कहा है? तेरापंथ प्रवक्ता श्री मोतीलाल एच रांका ने दस मिनट तक अपरिग्रहवाद का विभिन्न पहलुओं से विश्लेषण प्रस्तुत किया। जैन धर्म में अपरिग्रहवाद की जो विशद विवेचना है, उसे सुन बौद्ध विद्वान् अत्यन्त
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