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जैन धर्म और बौद्ध धर्म
और अंगूठा-दोनों मिलेंगे तब वह पात्र उठ पाएगा। हमें कुछ लिखना है। क्या हम केवल अंगुली से लिख पाएंगे? क्या हम केवल अंगूठे से लेखनी पकड़ पाएंगे? लेखनी को हम तब पकड़ पाएंगे जब अंगुली और अंगूठा - दोनों का योग होगा। अंगुली के प्रतिपक्ष में है अंगूठा। अनेकांत का नियम है-विरोधी को साथ में लिए बिना हम काम नहीं कर सकते। विरोधी को साथ में लेकर ही हम कोई काम कर पाएंगे। यदि अंगूठा अंगुली की दिशा में ही होता तो आदमी बंदर जैसा ही होता, कोई काम का नहीं होता। एक
ओर चार अंगुलियां हैं और प्रतिपक्ष में अंगूठा है तो हमारा सारा विकास हो रहा है। अविरोध है विरोध में ___ अनेकान्तवाद का ध्रुव सिद्धान्त है-पक्ष है तो प्रतिपक्ष का होना जरूरी है। अन्यथा हम काम नहीं कर पाएंगे। विरोधी होने का मतलब दुश्मन होना नहीं है। महावीर ने अनेकान्त के साथ-साथ अहिंसा का प्रतिपादन किया। यदि महावीर अनेकान्त का प्रतिपादन करते और अहिंसा का प्रतिपादन नहीं करते तो अनेकान्त भी भ्रान्त हो जाता। अनेकान्त का हार्द है-सब विरोधी धर्म हैं, विरोधी युगल हैं, कोई भी अविरोधी नहीं है, एक दूसरे का विरोधी मिलकर काम करता है। पोजिटिव और नेगेटिव चार्ज मिलता है तो प्रकाश होता है। बिना विरोधी मिले कुछ होता नहीं है, यह बात बिल्कुल विषम लगती है। हम प्रत्येक विरोधी पर संदेह करते हैं-यह भी मेरा विरोधी है. यह भी मेरा विरोधी है-इस चिन्तन से सबको विरोधी मान लेते हैं तो काम ही नहीं चल पाएगा। महावीर ने इस समस्या के संदर्भ बहुत सुन्दर मार्गदर्शन दिया। उन्होंने कहा-विरोध का अर्थ शत्रुता नहीं है। प्रत्येक विरोध के बीच में एक अविरोध छिपा हुआ है। केवल विरोध ही नहीं है। विरोध और अविरोध-दोनों के समन्वय का नाम है अनेकान्त। साधना : मध्यम मार्ग
हमें यह स्वीकार करने में कोई कठिनाई नहीं है कि आचार के पक्ष में बुद्ध ने दोनों अतिवादों का विरोध किया। न कोरा ज्ञानवाद और न कोरा तपवाद। न केवल कष्ट सहना और न बहुत आराम या सुविधावाद को
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