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भेद में छिपा अभेद
बात को सर्वथा स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसका अर्थ है दुनिया का प्रत्येक विचार सापेक्षदृष्टि से मान्य है और निरपेक्षदृष्टि से अमान्य है। सापेक्ष विचारों का समवाय दृष्टिकोण जो महावीर ने दिया, वह एक नई और मौलिक प्रस्थापना है। इस स्थापना ने दार्शनिक उलझनों को सुलझाने में बहुत बड़ा योगदान दिया है।
सापेक्ष है प्रत्येक विचार
आज भी हमारे लिए अनेकान्तदृष्टि उपलब्ध है। हम प्रत्येक दर्शन को पढ़ें, विज्ञान की शाखाओं को पढ़ें, सापेक्षदृष्टि से, नयदृष्टि से पढ़ें और यह मानें कि प्रत्येक सिद्धान्त और विचार सापेक्ष है, एक नय है।
डार्विन का जो विकासवाद का विचार है, वह एक नय है । फ्रायड़ का जो मनोविश्लेषणवाद है, वह भी एक नय है। मार्क्स का आर्थिकविश्लेषणवाद - साम्यवाद भी एक नय है। इन तीन व्यक्तियों ने वर्तमान की विचारधारा को बहुत प्रभावित किया है। मार्क्स, फ्रायड और न वर्तमान की वैचारिक एवं वैज्ञानिक पीढ़ी को प्रभावित करने वाले तीन महान् व्यक्तित्व हुए हैं। अनेकान्तदृष्टि से देखें तो इन तीनों के विचार तीन नय हैं। हम इन्हें अस्वीकार नहीं करेंगे, इनका सर्वथा खण्डन. नहीं करेंगे किन्तु इनको एक नय मानेंगे, पूरी बात नहीं मानेंगे। जैन दर्शन का यह अभिमत रहा - किसी भी एक विचार को पूरा मत मानो, शत-प्रतिशत मत मानो । अमुक विचार ठीक है, यह कह सकते हैं पर यह मत कहो-यह विचार पूर्णतः ठीक है । हमारी पूरी बात मिलकर बनती है। दुनिया में पूरी कोई बात होती ही नहीं है। दुनिया का नियम ही है सापेक्षता । पूरा कुछ नहीं है दुनिया में। चाहे आत्मा हो, परमात्मा हो, निर्वाण हो या और कुछ। सबका अपना-अपना अवकाश, अपनी अपनी सीमा और अपनी अपनी मर्यादा है।
अनेकान्त का नियम
हाथ का एक भाग है अंगुली । अंगुली पूरा हाथ नहीं है। अंगूठा हाथ का एक अंग है पर वह हाथ नहीं है । यदि अंगूठा और अंगुली न हो तो हाथ का . क्या उपयोग होगा? हमें किसी गिलास या पात्र को उठाना है । क्या अंगुली से वह पात्र उठ जाएगा? क्या अंगूठे से वह पात्र उठ पाएगा? जब अंगुली
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