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जैन धर्म और बौद्ध धर्म
प्रभावित हुए। जापान के समागत बौद्ध विद्वानों ने हमारे प्रतिनिधियों को जापान यात्रा का निमंत्रण दिया और इस विषय पर एक विस्तृत व्याख्यान देने का अनुरोध किया। केवल निमंत्रण ही नहीं दिया, प्रतिनिधि मंडल की यात्रा की सारी व्यवस्थाएं जुटा दीं। आचार का क्षेत्र : नई दिशा का उद्घाटन
भगवान् महावीर ने अपरिग्रहवाद का सूत्र प्रस्तुत कर आचार के क्षेत्र में एक नई दिशा का उद्घाटन किया। वैचारिक इतिहास की दृष्टि से यह स्वीकार करने में कोई कठिनाई नहीं है-अपरिग्रह के बारे में जितना विश्लेषण जैन आगमों में मिलता है शायद भारतीय साहित्य में कहीं भी प्राप्त नहीं है। ऐसा लगता है-अहिंसा और अपरिग्रह-इन दोनों पर जैनों का एकछत्र साम्राज्य है। इसका अर्थ यह नहीं है कि दूसरे धर्मों ने इन पर विचार नहीं किया। दूसरे धर्मों ने इन पर विचार किया है किन्तु बहुत विवाद नहीं है। महावीर ने जितने विस्तार से इस विषय का प्रतिपादन किया है जितनी गहराई में जाकर इस विषय को प्रस्तुत किया है, उस गहराई तक पहुंचने वाले व्यक्ति विरल हैं। यदि अपरिग्रहवाद का सम्यक् मूल्यांकन किया जाए तो वर्तमान की अनेक समस्याओं को समाधान मिल जाए। वर्तमान समस्याओं के संदर्भ में महावीर के ये तीन सिद्धान्त-अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत बहुत प्रासंगिक बन गए हैं। इनकी प्रासंगिकता के साथ जैन धर्म भी प्रासंगिक बन जाता है। काका कालेलकर की वेदना
आचार्यवर का हिसार में चातुर्मास था। अचानक एक दिन काका कालेलकर दिल्ली से हिसार आए। अचार्यवर ने कहा-काका साहब! इस गर्मी में आप अचानक कैसे आए? काका कालेलकर बोले-आचार्यजी! क्या करूं? मन में बड़ी पीड़ा है, वेदना है, मुझसे रहा नहीं गया, इसलिए मैं अपने मन की पीड़ा आपको सुनाने आया हूं। आचार्य श्री ने सोचा-काका साहब इतने प्रतिष्ठित आदमी हैं; भारत सरकार भी इनका सम्मान करती है। इनके मन में क्या पीड़ा हो सकती है? आचार्यश्री ने कहा-काका साहब! आपके मन में क्या पीड़ा है? काका कालेलकर बोले- आचार्यजी! आज जैनों को हो क्या गया है? जिस धर्म के पास अनेकान्त जैसा सिद्धान्त
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