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________________ जैन धर्म और बौद्ध धर्म कहा- इनके पचड़े में मत फंसो, इन दार्शनिक उलझनों में मत जाओ । तुम्हें करना क्या है? समाधि से जीना है, दुःख से मुक्त होना है । तुम दुःख से मुक्त होने की साधना करो । आत्मा है या नहीं ? परलोक है या नहीं? इनसे तुम्हें क्या मिलेगा? बुद्ध ने इस भाषा में कहा - किसी व्यक्ति को तीर लगा। तीर को निकालना है, घाव भरना है, उसकी सार-संभाल और चिकित्सा करनी है। यह सब नहीं करेगा तो वह उलझन में फंस जाएगा। तीर किससे बना? तीर किसने बनाया? इनसे क्या मतलब है? जो करना है, वह तो कहीं रह जाएगा और व्यक्ति उलझन में फंस जाएगा । चार आर्यसत्य बुद्ध ने कहा- तुम इन दार्शनिक उलझनों में मत फंसो। तुम इन चार आर्य सत्यों की साधना करो - १. दुःख २. दुःख समुदय ३. दुःख का निरोध ४. दु:ख निरोधगामिनी प्रतिपत्ति । ५९ ये चार आर्यसत्य हैं-दुःख है, दुःख के हेतु हैं । दुःख को समाप्त किया जा सकता है, दुःख को समाप्त करने वाली प्रतिपत्ति है, निर्वाण है। इतना जानना बहुत है। इससे ज्यादा जानना आवश्यक नहीं है। महावीर और बुद्ध का दृष्टिकोण - महावीर ने पंचास्तिकाय और नौ पदार्थ - दोनों का प्रतिपादन किया। बुद्ध का साधनामार्ग है - चार आर्यसत्य और महावीर का साधनामार्ग है नौ पदार्थ। नौ पदार्थ मोक्ष का मार्ग है, दुःख - मुक्ति का मार्ग है। इसके साथ-साथ महावीर ने पंचास्तिकाय का भी निरूपण किया। हमारे लिए जगत् को जानना भी जरूरी है । जगत् को जाने बिना केवल दुःख - मुक्ति की बात करेंगे तो वह पूरी बात नहीं होगी । इसीलिए महावीर की दृष्टि को उभयस्पर्शी दृष्टि कहा गया। बुद्ध की दृष्टि को वर्तमानस्पर्शी दृष्टि कहा जा सकता है। बुद्ध का दृष्टिकोण रहा- वर्तमान दुःखों का प्रतिकार करना। जो समस्या सामने आए, उसका समाधान खोजना, दुःखमुक्ति का मार्ग खोजना और उसकी साधना करना । महावीर का मार्ग उभयस्पर्शी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003085
Book TitleBhed me Chipa Abhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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