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जैन धर्म और बौद्ध धर्म
आज से ढाई हजार वर्ष पहले का भारतवर्ष। यही भूमि, यही आकाश, यही चांद, सूरज और सितारे। इस धरती पर कुछ परिवर्तन हो रहा था। कुछ क्रांतियां घटित हो रही थीं। विचारों का उद्वेलन हो रहा था। कुछ नई स्थापनाएं सामने आ रही थीं और कुछ पुरानी स्थापनाएं समाप्त हो रही थीं। उस वातावरण में दो महापुरुषों ने जन्म लिया। एक थे महावीर और दूसरे थे बुद्ध। दोनों ने क्षत्रिय राजकुल में जन्म लिया। महावीर इक्ष्वाकुवंश में जन्मे और बुद्ध शाक्यवंश में। महावीर वैशाली गणतंत्र में पैदा हुए और बुद्ध शाक्य गणतंत्र में। दोनों ने गृह का त्याग किया, मुनि बने। महावीर ने श्रमण परंपरा में निग्रंथ परंपरा का उन्नयन किया और बुद्ध ने श्रमण परंपरा में बौद्ध परंपरा को जन्म दिया। ऐतिहासिक दृष्टि से समीक्षा करें तो यह निष्कर्ष निकलेगा-महावीर और बुद्ध - दोनों ने पार्श्व की परंपरा का अनुगमन किया। पार्श्व का प्रभाव
भगवान् पार्श्व तेईसवें तीर्थंकर थे। महावीर चौबीसवें तीर्थंकर बने। बुद्ध का सीधा संबंध पार्श्व की परंपरा से नहीं जुड़ा किन्तु बुद्ध ने जिस 'शब्दावली को अपनाया, जिस परिभाषा को अपनाया, वे सारी की सारी शब्दावलियां और परिभाषाएं पार्श्व की शब्दावलियां और परिभाषाएं थीं। उससे ऐसा स्पष्ट होता है-पार्श्व और बुद्ध की भाषा में बहुत निकटता थी, पार्श्व और महावीर की भाषा में बहुत निकटता थी। इसीलिए महावीर और बुद्ध की भाषा भी एक जैसी मिल जाती है। आश्रव, संवर, निर्वाण आदि-आदि जो साधना के शब्द हैं, परिभाषाएं हैं, वे जैन
और बौद्ध-दोनों धर्मों में समान रूप से मिल जाती हैं। इसीलिए कुछ पश्चिमी विद्वानों को यह भ्रम भी हो गया-जैन धर्म बौद्ध धर्म से निकला है। यह बौद्ध धर्म की ही एक शाखा है। भ्रान्तिवश ऐसी स्थापना भी कर
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