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पातंजल योगदर्शन और मनोनुशासनम्
सूरज ने अपनी पत्नी से कहा- चलो, मनुष्य लोक में चलें। हम देखेंगे - लोगों के मन में हमारे प्रति क्या धारणा है ? जनता हमारे बारे में क्या सोचती है ? दोनों वेष बदलकर धरती पर आए। दोनों बाजार में गए। वहां बहुत सारे लोग बैठे हुए थे। सूरज बोला- देखो ! सूरज कितना अच्छा है। कितना प्रकाश दे रहा है।
एक आदमी बोला- क्या प्रकाश दे रहा है? इस भयंकर गर्मी में सारा शरीर झुलस रहा है। हम तो चाहते हैं - सूरज चला जाए, आकाश में बादल छा जाएं, बरसात आए ।
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सूरज कुछ आगे बढ़ा, दूसरे मौहल्ले में पहुंचा। अपना वही प्रश्न लोगों के सामने रखा। लोग बोले- सूरज बड़ा धोखेबाज है। अगर कोरी रात होती, अंधेरा होता तो धोखा नहीं होता। सूरज जब छिप जाता है, समस्या पैदा कर देता है। या तो प्रकाश करना नहीं चाहिए और प्रकाश दे तो फिर निरन्तर देना चाहिए।
सूरज ने शहर के अनेक भागों में अपने बारे में होने वाली प्रतिक्रियाओं को सुना। बहुत कम लोग ऐसे मिले, जो सूरज की प्रशंसा कर रहे थे। चारों तरफ अपने बारे में होने वाली नुक्ता- -चीनी से सूरज परेशान हो उठा। वह खिन्न स्वर में बोला- इन लोगों का भला करना काम का ही नहीं है। अब हम उगना ही बंद कर देंगे। कल से आएंगे ही नहीं इस लोक में । कहीं एकान्त गुफा में जाकर बैठ जाएंगे।
सूरज की पत्नी ने कहा- महाराज ! आप जैसे यशस्वी - प्रतापी राजा को ऐसा चिन्तन शोभा नहीं देता। क्या आप नहीं जानते - क्षुद्र आदमी का काम है. ढेला फेंकना और महान् आदमी का काम है उसे झेलना । महान् आदमी क्षुद्र व्यक्तियों के व्यवहार से क्षुब्ध होकर कभी अपना काम बंद नहीं करते।
योग : नई दिशा
यह ढेला फेंकने की बात दुनियां में चलती रहती है। जब तक अनुप्रेक्षाओं का दृढ़ अभ्यास न हो जाए तब तक क्षुद्रता की मनोवृत्ति को मिटाया नहीं जा सकता । अनित्य, एकत्व और अन्यत्व ये तीन अनुप्रेक्षाएं अध्यात्म जागरण की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। इनके
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