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________________ पातंजल योगदर्शन और मनोनुशासनम् प्रतिक्रिया : निदर्शन एक आदमी छाता लिए चल रहा था। धूप आई, उसने छतरी को खोला और सिर पर तान लिया । वर्षा आई तब भी उसने ऐसा ही किया । यह क्रम दस-बीस दिन लगातार चलता रहा। एक दिन छतरी ने हाथ से कहा- तुम मुझे छोड़ दो। यह आदमी मुझे बहुत परेशान कर रहा है। जब भी कुछ कठिनाई आती है, मुझे अपने सिर पर तान लेता है । वर्षा और धूप आती है तो मुझ पर गिरती है । सारा कष्ट मैं सहन करूं और यह आराम से चले, ऐसा नहीं होना चाहिए। तुम ऐसा करो - मुझे हाथ में मत रखो, छोड़ दो, फिर मैं देखती हूं कि क्या होता है? हाथ बोला- तुम भी कितनी नादान हो। तुम यह सोच रही हो कि मैं धूप और वर्षा से रक्षा कर रही हूं, पर तुम यह भी सोचो - तुमको बनाया किसने? आदमी के मस्तिष्क ने ही तुम्हारा निर्माण किया है। अन्यथा तुम्हारा अस्तित्व ही नहीं होता । उसकी रक्षा करने में तुम्हें कौन-सा कष्ट हो रहा है? तुम्हारा कार्य है त्राण देना, धूप और वर्षा से बचाना। योग : समग्र परिभाषा अचेतन में भी प्रतिक्रिया होती है तो चेतन आदमी के मन में न जाने कितनी प्रतिक्रियाएं होती होंगी। जहां निरोध की बात आएगी वहां प्रतिक्रियाएं होंगी। हम सबसे पहले प्रतिक्रियाओं का शोधन करें। जब तक प्रतिक्रियाओं का शोधन नहीं होगा, निरोध की स्थिति संभव नहीं बन पाएगी। ५१ महर्षि पतंजलि ने पहले अध्याय के प्रारम्भ में योग-निरोध की बात कही और दूसरे अध्याय के प्रारंभ में क्रियायोग की बात कही। मनोनुशासनम् में योग की परिभाषा में ही पहले शोधन और उसके पश्चात् निरोध की बात प्रस्तुत है । केवल चित्तवृत्ति के निरोध से योग की पूरी परिभाषा नहीं बनती। चित्तवृत्ति का निरोध और क्रियायोग - दोनों मिलकर योग की पूरी परिभाषा देते हैं। शोधन तपस्या से हम तपस्या के द्वारा शोधन करें | व्यास ने तपस्या के संदर्भ में लिखा - तपः द्वन्द्वसहनम् - तपस्या का अर्थ है द्वन्द्वों को सहन करना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003085
Book TitleBhed me Chipa Abhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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