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________________ 10 पातंजल योगदर्शन और मनोनुशासनम् योग शब्द की व्यापकता निर्वाण की साधना प्रारंभ होती है निरोध से। पतंजलि ने अपना साधना का मार्ग 'योग' से शुरू किया। आज योग शब्द बहुत प्रचलित हो गया है। यद्यपि जितनी निवृत्तिवादी धाराएं रही हैं, उनमें 'योग' शब्द सामान्य रूप से प्रचलित रहा है। जैन, बौद्ध और सांख्य-इन तीनों में योग शब्द का व्यापक प्रयोग मिलता है। जैन धर्म में योग शब्द के अनेक आयाम विकसित हुए हैं-तपोयोग, भावनायोग, संवरयोग, स्वाध्याययोग आदि आदि। योग की एक समग्र पद्धति रही है। महर्षि पतंजलि ने योग-दर्शन का निर्माण किया और उसमें 'योग' शब्द को बहुत व्यापकता दी। पातंजल योगदर्शन योग का एक व्यवस्थित ग्रन्थ है। साधना के मार्ग में ऐसे व्यवस्थित ग्रंथ बहुत कम हैं। पातंजल योगदर्शन का पहला सूत्र है-योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:-चित्तवृत्ति का निरोध करना योग है। निरोध है योग। योग का एक अर्थ जोड़ना भी होता है लेकिन प्रस्तुत प्रसंग में योग का अर्थ है-निरोध, समाधि। कहा जा सकता है-पातंजल योगदर्शन समाधि का सूत्र है। उसमें समाधि की पूरी प्रक्रिया बतलाई गई है। योग : क्रियायोग ___ मनोनुशासनम् जैन परंपरा से जुड़ा हुआ ग्रन्थ है। इसमें दो बातें मुख्य हैं-निरोध और शोधन। धर्म के दो प्रकार हैं-संवर और निर्जरा। संवर है-योग-निरोध। निर्जरा है-शोधन। हम इस बात पर ध्यान केन्द्रित करें-निरोध के लिए शोधन बहत आवश्यक है। संवर की अर्हता-निरोध की योग्यता बाद में प्राप्त होती है। उससे पहले शोधन करना होता है। हम शोधन करें। शुद्धि होते-होते निरोध करने की क्षमता आती है। चित्त-वृत्ति का निरोध करना योग है, यह सूत्र तो ठीक है लेकिन इससे बात पूरी नहीं होती। पतंजलि को दो सूत्रों का निर्माण करना पड़ा-चित्तवृत्तिनिरोधो योगः तथा तपःस्वाध्याय- प्रणिधानानि क्रियायोगः। योग और क्रियायोग-दोनों आवश्यक हैं। केवल योग से काम नहीं चल सकता, चित्तवृत्ति के निरोध से काम नहीं चल सकता। पहले निरोध होना ही कठिन है इसलिए उसके दो विभाग कर दिए गए-योग और क्रियायोग। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003085
Book TitleBhed me Chipa Abhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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