SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पातंजल योगदर्शन और मनोनुशासनम् मेरे सामने दो ग्रंथ हैं - पातंजल योगदर्शन और मनोनुशासनम् । पातंजल योगदर्शन दो हजार वर्ष पुराना ग्रन्थ है और मनोनुशासनम् पच्चीस-तीस वर्ष पुराना । दोनों की तुलनात्मक दृष्टि से मीमांसा करनी है। वस्तुतः तुलना करना बहुत कठिन भी है और बहुत सरल भी है । कोई भी विषय ऐसा नहीं है, जो किसी एक बिन्दु पर समान न होता हो । एक बिन्दु ऐसा आता है, दोनों ग्रन्थ समान भूमिका पर आ जाते हैं । जहां इन्द्रिय- प्रत्यक्ष का प्रश्न है, उसमें कोई अन्तर नहीं है । ऐसे कुछ बिन्दु और हो सकते हैं, जो एक समान प्रतीत होते हैं किन्तु वह वास्तविक तुलना नहीं है । किस ग्रन्थ की आधार - भूमि क्या है ? किस पृष्ठभूमि के आधार पर उसका दर्शन पनपा है, विकसित हुआ है ? इन प्रश्नों के संदर्भ में जो तुलना होती है, वह वास्तविक होती है। धर्म की दो धाराएं पातंजल योगदर्शन सांख्य दर्शन की साधना पद्धति का प्रतिनिधि ग्रंथ है। मनोनुशासनम् जैन साधना पद्धति का प्रतिनिधि ग्रंथ है। दोनों के पीछे अपनी-अपनी दार्शनिक पृष्ठभूमि है । आश्चर्य यह है कि दोनों में बहुत समानता है। दोनों निवृत्तिवादी धारा के प्रतिनिधि ग्रंथ हैं। धर्म की दो धाराएं रही हैं - प्रवृत्तिवादी धारा और निवृत्तिवादी धारा । प्रवृत्तिवादी धारा का उद्देश्य है - स्वर्ग | निवृत्तिवादी धारा का उद्देश्य है - मोक्ष, निर्वाण या शांति। प्रवृत्तिवादी धारा का साधना मार्ग है - ईश्वर की पूजा करना, ईश्वर की आराधना करना, दान-पुण्य करना आदि । निवृत्तिवादी धारा में जो साधना मार्ग है, उसमें निरोध की बात मुख्य है - आश्रव का निरोध करना, क्लेश का निरोध करना आदि । निर्वाण के लिए निरोध जरूरी है। उसमें ईश्वर पूजा या दान-पुण्य की कोई मुख्यता नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003085
Book TitleBhed me Chipa Abhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy