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________________ आचारांग और उपनिषद् (२) स्थापना की। केनोपनिषद् कहता है - 'हमारे इस जगत् में जितनी शक्तियां हैं, वे अनंतशक्ति वाले ब्रह्म की ही आशिक शक्तियां हैं, केवल अभिव्यक्ति हो रही है। आचारांग का प्रतिपाद्य आचारांग इसका समीक्षा सूत्र है। आचारांग ने इस बात को स्वीकार नहीं किया - सारी शक्तियां उस अनंतशक्ति-ब्रह्म की ही आशिक शक्तियां हैं। यदि उसी ब्रह्म की आंशिक शक्तियां हैं तो क्या वे दानवों में नहीं थी? इस संदर्भ में आचारांग का प्रतिपाद्य यह है - प्रत्येक प्राणी में अपनी अपनी अनंत शक्ति है। केवल एक ब्रह्म में ही अनंत शक्ति नहीं है। चाहे पृथ्वी का जीव है, पानी, अग्नि या वायु का जीव है, प्रत्येक में अपनी अपनी अनंत शक्ति है। हमारी शक्तियों की जो अभियक्तियां होती हैं, वे किसी से उधार ली हुई नहीं हैं। प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्र ब्रह्म बिम्ब : प्रतिबिम्ब उपनिषद् और आचारांग की स्थापना में यह बहुत बड़ा अन्तर है। उपनिषद् प्रत्येक शक्ति का एक केन्द्र ब्रह्म को मानता है और जगत् को मायाजाल। आचारांग - जैन दर्शन का अभिमत है -- कोई भी प्राणी किसी का प्रतिबिम्ब नहीं है। प्रत्येक प्राणी का अपना अपना विम्ब है। प्रत्येक प्राणी में अपनी स्वतंत्र और अनंत चेतना है। यह अनंत शक्तिवाद है। अनंतशक्ति और स्वतंत्र सत्ता प्रत्येक में है। जिसका अस्तित्व अनावृत हो गया, उसका प्रकट हो गया। जिसका आवत है, उसका पूरा अभिव्यक्त नहीं हुआ है। यह अभिक्ति का तारतम्य ही नानात्व है। भेद है आदान का आचारांग का प्रसिद्ध सूत्र है - आयाणं निसिद्धा सगडभि – यह एक सूत्र ही सारी स्थापना के दर्शन को बदल देता है। किम व्यक्ति ने बाहर से कितना लिया है? एक आदमी से दूसरे आदमी में अन्तर क्या है? इस भेद के कारण को समझना है। भेद है आदान का, आयतन का। थाली का आयतन छोटा है और नदी का आयतन बहत बड़ा है। जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003085
Book TitleBhed me Chipa Abhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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