________________
आचारांग और उपनिषद् (२)
चिन्तन : नया पड़ाव
भारतीय तत्त्वचिन्तन में उपनिषद् एक नया पड़ाव है। एक समय था - जब भौतिकवाद का बहुत प्रभाव था और बहुत प्रभाव था देववाद का । प्रकृति का कोई भी कण ऐसा नहीं, जिसमें देववाद का आरोपण न कर लिया गया हो । यह स्थिति बहुत व्यापक बनी हुई थी। उस समय श्रमणों की धारा ने युग को प्रभावित किया । आत्मवाद के द्वारा एक नई शक्तिशाली धारा ने जन्म लिया। उसका संबंध उपनिषद् से भी है। मैं नहीं सोचता कि उपनिषद् कोरा वैदिक साहित्य है । यह व्यापक साहित्य रहा है। जहां से भारतीय चिन्तन में एक नया मोड़ आया है, उपनिषद् की उपस्थिति रही है । भगवान् पार्श्व का समय भारतीय चिन्तन के लिए विशिष्ट समय रहा है। उपनिषद् का समय भी उन्हीं के आस-पास है। उपनिषद् की स्थापना
अध्यात्मवाद और आत्मवाद ने भौतिकवाद को बहुत प्रभावित किया है। बृहदारण्यक उपनिषद् और औसीतकी का एक प्रसंग है। अभिमानी बालाकी काशीराज अजातशत्रु के पास जाता है। दोनों में वार्तालाप होता है। बालाकी स्वाभिमानी था। उसने आधिदैविक शरीर तक सारी मीमाएं बना रखी थी। काशीराज अजातशत्रु आत्मविज्ञ थे। काशीराज ने कहा तुम शरीर और पदार्थों पर अटके हुए हो। तुमने आत्मा की कभी अनुभूति नहीं की।
उपनिषद् का महत्त्व इसलिए बढ़ जाता है कि वह आधिदैविक या आधिभौतिक सत्ताओं और कर्मकाण्डों से हटकर एक आत्मा- ब्रह्म की स्थापना करता है। सारी सत्ता चैतन्य की है। चैतन्य ही सब कुछ है, जड़ का कोई अस्तित्व नहीं है। इस सम्बंध में उपनिषद्कारों ने एक नई
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org