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आचारांग और उपनिषद् (१)
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और तपस्या करना आत्मा की एक मौलिक मनोवृत्ति है। आत्मा का स्वभाव तो न खाना है। जो खाया जा रहा है, वह मन के स्वभाव के कारण खाया जा रहा है। आचारांग और उपनिषद् का रहस्य-सूत्र __ आत्मा को पकड़ना मूल बात को पकड़ना है। अगर हम इस मूल सचाई को पकड़ लेते हैं, आत्मा को समझने का प्रयत्न करते हैं तो उपनिषद् का सार भी समझ में आएगा, आचारांग का हृदय भी पकड़ में आएगा और वह सत्य, जो केवल सत्य है, अद्वैत के रूप में हमारे सामने आएगा। जरूरी है शास्त्रों के साथ साथ आत्मा को पढ़ना। इसके बिना शास्त्र कभी सहायक नहीं बनेगा। शास्त्र का काम है दिशा दिखा देना। वह कभी साथ नहीं चलता। हमारे साथ चलेगी हमारी आत्मा इसलिए हम आत्मा के बारे में चिन्तन, मनन और निदिध्यासन करें, श्रवण, ज्ञान और विज्ञान करें।
आत्मा को पा लिया तो आचारांग और उपनिषद् का सम्पूर्ण रहस्य पा लिया, सारे शास्त्रों का ज्ञान हस्तगत कर लिया। आचारांग और उपनिषद् के तुलनात्मक अध्ययन एवं अन्वेषण का अर्थ है - आत्म - साक्षात्कार की दिशा में प्रस्थान।
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