________________
आचारांग और उपनिषद् (1)
वर्तमान शिक्षा की एक समस्या है - शिक्षा से बौद्धिक विकास बहुत हो जाता है किन्तु उससे जीवन में आने वाली समस्याओं से जूझने की, उनका समाधान पाने की क्षमता नहीं जागती है या बहुत कम जागती है। यह समस्या आज की नहीं है, उपनिषद् काल में भी यह समस्या रही है।
नारद की समस्या
नारद सनत्कुमार के पास आए और बोले – मुझे ऐसी विद्या दो, जिससे मैं शोक से तर जाऊं।
सनत्कुमार ने पूछा - बताओ! तुमने क्या क्या पढ़ा है? नारद ने कहा - मैंने ऋग्वेद को पढ़ा है। जितने वेदांग होते हैं, उन सबको सांगोपांग पढ़ा है। __ सनत्कुमार बोले - जिससे शोक को तरा जाता है, वह तुमने नहीं पढ़ा है। जब तक तुम आत्मा को नहीं जानते तब तक शोक को नहीं तर सकते।
'शोकं तरति आत्मविद्' - जो आत्मविद् होता है, वही शोक को तर सकता है। संयोग - वियोग की दुनियां में जीने वाला आदमी, जो केवल भौतिक विज्ञान को जानता है, जीवन की समस्याओं का, शोक और विषाद का पार नहीं पा सकता। हर्ष और शोक से परे वही जा सकता है, जो आत्मा को जानता है।
उपनिषद् में आत्मा का बहुत बड़ा प्रकरण है। मूलतः आत्मविद्या पहले क्षत्रियों के पास थी और उनसे वह ब्राह्मणों को प्राप्त हुई। बदलाव का शक्तिशाली साधन
भगवान महावीर ने कहा - संग को देखो, आसक्ति को देखो। आसक्ति
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org