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________________ आचारांग और उपनिषद् (१) ४१ बहुत सताती है। लोग उसे छोड़ना चाहते हैं पर वह छूटती नहीं है। कारण यह है - हम देखना नहीं जानते। समस्या का समाधान है प्रेक्षा। जब तक हम किसी वस्तु का साक्षात्कार नहीं कर लेते तब तक वह छुटती नहीं है। आदतों से छुटकारा पाने का यह अचूक उपाय है। चाहे जैसी भी आदत हो, यदि उसे छोड़ना है तो उसका एक मात्र शक्तिशाली साधन है प्रेक्षा। जब व्यक्ति देखना सीख लेता है, आदत अपने आप छूट जाती है। उसे छोड़ने के लिए प्रयत्न नहीं करना पड़ता। जो बदलाव प्रेक्षा से आता है, वह अनेक बार पढ़ने-सनने से नहीं आ सकता। अनेक बार उपदेश पढ़ने-सुनने वाला आदमी जैसा का तैसा बना रहता है और देखने वाले आदमी में बदलाव घटित हो जाता है। चिन्तन : दर्शन हम सोचना जानते हैं, देखना नहीं जानते। सोचना मस्तिष्क का काम है पर देखने के लिए और गहरे में जाना होता है। देखने की शक्ति आत्मा की शक्ति है। वह है अनुभव। जहां देखना शुरू होगा वहां चिन्तन एक बार बंद हो जाएगा। चिन्तन और दर्शन - दोनों साथ-साथ नहीं चल सकते। आसक्ति को देखो, आसक्ति छूट जाएगी। उसका साक्षात्कार होगा तो सारी समस्याएं स्वतः सुलझ जाएंगी। मूलकारण है आत्मा उपनिषद् का प्रसंग है। पूछा गया - यह पात्र क्या है? उत्तर मिलामिट्टी है। प्रतिप्रश्न हुआ - मिट्टी कैसे है? कहा गया - यह सारा मिट्टी का विकार है। मृदेव सत्यं - सचाई है मिट्टी। मिट्टी मूल है, और सब उसके परिणमन हैं। ठीक इसी प्रकार मूल है आत्मा। जिसने मूल कारण को, आत्मा को नहीं जाना, उसकी वृत्तियां – शोक, हर्ष, भय, ईर्ष्या, लोभ आदि कभी मिटने वाली नहीं हैं। इन विकारों का मल संबंध हमारी आत्मा की काषायिक परिणति के साथ जड़ा हुआ है। यदि हम आत्मा को नहीं मानते तो इनका समाधान कैसे होगा? इन सारी समस्याओं को मिटाने के लिए मूल कारण को खोजना होगा और वह है आत्मा। पराविद्या का मूल्य कठोपनिषद्, छांदोग्य उपनिषद् और बृहदारण्यक उपनिषद आत्मा के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003085
Book TitleBhed me Chipa Abhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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