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भेद में छिपा अभेद
मिश्रण में चावलों का मांड और मिला लो, परिपूर्णता आ जाएगी। समग्र जीवन की परिभाषा
जीवन की लंबी यात्रा को वही व्यक्ति तय कर सकता है, जिसके जीवन में परिपूर्णता आ जाए। ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्म योगतीनों मिलते हैं तो जीवन में पूर्णता आती है, जीवनशैली शांतिमय
और सुखद बन जाती है। अन्यथा लोग जीते तो हैं किन्तु मर मर कर जीते हैं क्योंकि वे समग्र जीवन की कला को नहीं जानते। भारतीय दर्शन में समग्र जीवन की जो परिभाषा की गई, वह यही है – क्रिया की शक्ति, जानने की शक्ति, समर्पण की शक्ति – सब कुछ विलीन करने की शक्ति - इन तीनों शक्तियों से सम्पन्न जीवन समग्र जीवन है। आचारांग और गीता के तुलनात्मक अध्ययन से समग्र जीवन की यह अवधारणा सहज ही प्रस्तुत हो जाती है। समता, क्षमता और स्थिरता
आचारांग का अनुशीलन करने पर तीन तत्त्व फलित होते हैं - समता, क्षमता और स्थिरता। महावीर का अहिंसा का सिद्धांत समता पर आधारित है। आचारांग का प्रवक्ता सामर्थ्य के बिना कुछ सोचता ही नहीं है। महावीर ने कहा - मैंने जो पराक्रम किया है, शक्ति का उपयोग किया है, तुम उसे देखो, अपनी शक्ति को मत छिपाओ। अपने सामर्थ्य का पूरा उपयोग करो। महावीर किसी को आलसी देखना नहीं चाहते थे। समता भी है, क्षमता भी है किन्तु स्थिरता नहीं होती है तो भी पूर्णता नहीं आती। जीवन शैली के तीन अंग बन गएसमतामयी जीवन शैली, क्षमतामयी जीवन शैली और स्थिरतामयी जीवन शैली। गीता का जीवन-दर्शन __ गीता के जीवन-दर्शन को देखें। यह विचित्र बात है - युद्धभूमि पर जो बात कही जा रही है, उससे भी यही जीवन का दर्शन फलित होता है। गीता का अध्ययन करने पर भी त्रिआयामी जीवनशैली का स्वरूप सामने आता है। गीता का प्रसिद्ध वाक्य है - समत्वं योग उच्यते। समता को योग कहा गया। योग और संयम - दो बात नहीं हैं। योग
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