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________________ आचारांग और गीता ( उलझन भरा प्रश्न हमारी दुनियां में एक आदमी नहीं है। अनेक आदमी हैं। विचार एक नहीं है । अनेक विचार हैं। अनेक व्यक्तियों के विचार तो अनेक हैं ही पर एक आदमी का विचार भी एक नहीं है। एक दिन में कई बार 'उसके विचार बदलते रहते हैं। अनेक आदमी हैं, अनेक विचार हैं तो अनेक धर्म क्यों नहीं होंगे? अनके संप्रदाय क्यों नहीं होंगे? धर्म भी अनेक बन गए, सत्य भी अनेक बन गए, ग्रंथ भी अनेक बन गए। एक समस्या पैदा हो गई किस बात को सच मानें और किस बात को झूठ मानें। किस धर्म का अनुगमन करें और किस धर्म का अनुगमन न करें? यह एक उलझन भरा प्रश्न है। www बुद्धि का स्तर : अनुभव का स्तर यह जगत् नाना वादों से इतना जटिल बन गया है कि योगी की जटा भी इतनी जटिल नहीं होती। इसे सुलझाने का एक ही उपाय है। यह कंघी से नहीं सुलझेगी । उस्तरे से ही इसे सुलझाना होगा। वह उस्तरा क्या है? हम रूपक की भाषा में सोचें। हमारा जो बुद्धि का व्यवसाय है, जो बौद्धिक कसरते हैं, वे कंघिया हैं। उस्तरा है हमारा अनुभव। जहां अनुभव होता है, वहां सारे द्वन्द्व समाप्त हो जाते हैं। एकत्व या निर्द्वन्द्व की स्थिति अनुभव के स्तर पर घटित होती है। जिन लोगों ने अनुभव के स्तर पर बात कही है, उनकी बात में कोई अन्तर नहीं है। स्वाभाविक प्रश्न Jain Education International 1 यह प्रश्न होना स्वाभाविक है। सत्य एक है तो फिर वाणियां अनेक क्यों ? ग्रंथ अनेक क्यों ? इस समस्या को सुलझाने के लिए हम एक सामान्य भूमिका पर आएं और वह यह है कि जो-जो बात अनुभव के स्तर पर कही गई है, उसमें कोई मतभेद नहीं है। जो भी अनुभूति - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003085
Book TitleBhed me Chipa Abhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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