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भेद में छिपा अभेद
साधु को ऐसा नहीं करना चाहिए, साधु को ऐसा करना चाहिए। साधु कौन होता है? साधु का धर्म क्या है आदि आदि। पर आप हमें यह सब क्यों सुनाते हैं? क्या हम साधु हैं? साधु-धर्म हमारे लिए कितना उपयोगी है ! आप हमें यह क्यों नहीं बताते कि हम क्या करें और क्यानहीं करें? गृहस्थ को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए?
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वस्तुतः यह एक विमर्शनीय प्रश्न है।
साहू शान्तिप्रसादजी जैन कोरे उद्योगपति नहीं थे। वे बहुत श्रद्धालु थे, अध्ययनशील और मननशील व्यक्ति थे। वे कहते "महाराज! कोरा धन में जीना ही क्या जीना है ? वस्तुतः जीना वह है, जिससे व्यक्ति की धार्मिक आस्था को बल मिले। धर्म कब करें?
धर्म के लिए कोई समय निश्चित नहीं है। आदमी सोचता है जब बुढ़ापा आयेगा तब धर्म करूंगा। जब वृद्धत्व आएगा तब व्यापार छोड़ दूंगा, धर्मध्यान करूंगा, सत् साहित्य पढूंगा। महावीर ने कहा जब तक बुढ़ापा न आए, जब तक शरीर में रोग न आए, इन्द्रियां हीन न हों तब तक धर्म करो । जब बुढ़ापा आ जाएगा, रोग से आक्रांत हो जाओगे, इन्द्रियां क्षीण हो जाएंगी, तब कुछ नहीं होगा
जरा जाव न पीलेई वाही जाव न वड्डुइ । जाविंदिया न हायति, ताव धम्मं समायरे ॥
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आचारांग चूर्णि तथा अनेक व्याख्या ग्रंथों में यह कहा गया है। चालीस वर्ष के बाद बुढ़ापा आना शुरू हो जाता है, नेत्रशक्ति क्षीण होने लग जाती है। आज वैज्ञानिक इस बात की पुष्टि कर रहे हैं। विज्ञान कहता है - चालीस वर्ष के आस-पास आंख की शक्ति कम होनी शुरू हो जाती है। एक बार मैंने आंखों का परीक्षण कराया। उस समय मैं सैंतीस वर्ष का था। डाक्टर ने परामर्श दिया आपको पढ़ना बहुत पड़ता है, इसलिए अब आपको चश्मा लगा लेना चाहिए, जिससे आंखे ठीक काम करती रहें ।
महाराज !
वैज्ञानिक स्वर
चालीस वर्ष की अवस्था आने पर इन्द्रियों का बुढ़ापा शुरू हो जाता
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