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________________ उत्तराध्ययन और महाभारत २७ है। जो काम करना है, उसे चालीस वर्ष से पहले पहले पूरा कर लेना चाहिए। यह कितना वैज्ञानिक स्वर है - बुढ़ापा न आए तब तक जो कुछ श्रेय करना है, कर लो। बुढ़ापे के भरोसे नहीं रहना चाहिए। आज का युवक सोचता है - अभी क्या अवस्था है? खूब धन कमाएं, भोग भोगें। धर्म करने की अवस्था तो बाद में है। यह चिन्तन वर्तमान में ही नहीं, अतीत में भी चलता रहा है। उत्तराध्ययन में मुनि बनने के लिए उद्यत अपने पत्रों से भग कहते हैं - यह दीक्षा लेने का समय नहीं है, अभी तुम भोग भोगो। जब अवस्था आए तब मुनि बनना। इस चिन्तन के संदर्भ में महावीर कहते हैं - आज का काम कल पर मत छोड़ो। 'मैं कल करूंगा' यह वही व्यक्ति कह सकता है, जिसने मौत के साथ मैत्री गांठ ली हो। कथन युधिष्ठिर का महाभारत का प्रसंग है। युधिष्ठिर के पास कोई याचक आया और उसने किसी वस्तु की याचना की। युधिष्ठिर ने कहा - आज नहीं, कल दूंगा। युधिष्ठिर के इस वाक्य को भीम ने सुना। उसने तत्काल नगाड़े बजाने का आदेश दे दिया। युधिष्ठिर ने कहा – यह असमय में नगाड़े कौन बजा रहा है? नगाड़े क्यों बजाए जा रहे हैं? युधिष्ठिर ने भीम से कहा - भीम! यह क्या कर रहे हो। भीम ने जवाब दिया - महाराज! आज बड़ी खुशी की बात है। आप कालजयी बन गए हैं। किसने कहा? आपने ही तो याचक से कहा था - मैं आज नहीं, कल दूंगा। इसका अर्थ है - आपका कल तक जीना निश्चित हो गया। आपने कल तक के लिए मौत को जीत लिया। युधिष्ठिर ने अपनी भूल स्वीकार की, नगाड़े बजने बंद हो गए। साम्यबिंदु हम उत्तराध्ययन और महाभारत के इन दोनों प्रसंगों को मिलाएं। चिन्तन में कितना साम्य है! उत्तराध्ययन और महाभारत में कहीं कहीं तो इतना साम्य है कि सहज ही यह प्रश्न उठ जाता है - संस्कृत का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003085
Book TitleBhed me Chipa Abhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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