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भेद में छिपा अमेद उसमें विरोधी बातें नहीं होती। जहां संग्रह होता है, समावेश होता है। वहां विरोधी बातें भी संकलित हो जाती हैं। एक अतिशयोक्ति
महाभारत एकं संकलन ग्रंथ है। जो भी अच्छा लगा, इसमें जोड़ दिया गया। जैन दर्शन की जो बात अच्छी लगी, महाभारत के साथ जोड़ दी गई। बौद्ध दर्शन की जो बात अच्छी लगी, उसे भी जोड़ दिया गया। जितनी धाराएं थीं, उनको जोड़कर एक सागर बना दिया गया। एक ऐसा समुद्र, जिसमें आकर सारी धाराएं मिल जाती हैं। इसीलिए शायद यह कहा गया - जो कुछ खोजना चाहो, महाभारत में मिल जाएगा। जो इसमें नहीं है, वह कहीं भी नहीं है। हालांकि यह एक अतिशयोक्ति है। इसमें बहुत सारी बातें हैं, यह तो कहा जा सकता है लेकिन जो इसमें नहीं है, वह कहीं नहीं है, यह नहीं कहा जा सकता। महाभारत : कुछ स्पष्ट तथ्य महाभारत के संदर्भ में कुछ बातें बहुत स्पष्ट हैं। महाभारत कोई एक ग्रन्थ नहीं है, वह अनेक ग्रंथों का संकलन है। वह किसी विचारधारा का प्रतिनिधि ग्रंथ नहीं है. अनेक विचारधाराओं का समवाय है। किसी एक धागे से यह कपड़ा नहीं बुना गया है। अनेक रंग के धागों से बुना हुआ है यह कपड़ा। इसमें नाना प्रकार के रंग भरे गये हैं- लाल, पीला, नीला, काला, हरा, सफेद आदि। इसकी बुनावट भी एक तरह की नहीं है, अनेक प्रकार की है। महाभारत और उत्तराध्ययन हम महाभारत के संदर्भ में उत्तराध्ययन पर विचार करें। उत्तराध्ययन एक छोटा ग्रंथ है। उसका श्लोक-परिमाण दो हजार माना जाता है। कहां सवा लाख पद्य-परिमाण और कहां दो हजार पद्य परिमाण! बहुत छोटा ग्रंथ और वह भी एक विषय का ग्रंथ। उत्तराध्ययन के रचनाकार का उल्लेख भी नहीं मिलता। यह एक- कर्तृक है या संकलन है, इसका निर्णय करना भी कठिन है। पाश्चात्य विद्वानों ने इस संदर्भ में कुछ खोजें की हैं और उनका निष्कर्ष है - उत्तराध्ययन के पहले अठारह अध्ययन एक बार संकलित हुए हैं और शेष अठारह अध्ययन बाद में
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