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उत्तराध्ययन और महाभारत
का समृद्ध अतीत भारतीय जनता के लिए प्रेरणा का कार्य करता है। रामायण और महाभारत
साहित्य की कई धाराएं हैं। उस साहित्य की धारा में दो महाकाव्य माने जाते हैं- रामायण और महाभारत। हम महाभारत की चर्चा करें। दिल्ली दूरदर्शन पर प्रसारित धारावाहिक ने महाभारत को एक नया जीवन प्रदान कर दिया है, एक नई स्मृति दिला दी है। आज जिसका नाम महाभारत है, पहले उसका नाम महाभारत नहीं था ।
उसका पहला नाम था 'जय' । श्लोक - संख्या भी बीस-तीस हजार से
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अधिक नहीं थी । शायद और भी कम रही होगी। उसका रूप बदला, ' प्रक्षेप होता चला गया, श्लोक बढ़ते चले गए। 'जय' नाम बदला और 'भारत' नाम से यह महाकाव्य जाना जाने लगा। जैन आगम नंदी सूत्र और अनुयोगद्वार में महाभारत का नाम मिलता है 'भारत' । बीस - इक्कीस हजार श्लोक वाले इस ग्रंथ में आज लाख से भी अधिक श्लोक माने जाते हैं। कितना प्रक्षेप हो गया। बहुत प्रक्षेप होता गया, ग्रन्थ परिमाण बढ़ता चला गया। सचमुच 'भारत' महाभारत बन गया। आज रामायण और महाभारत - दो कहावतें बन गई हैं। जहां कहीं थोड़ा बहुत झंझट होता है तो लोग कहते हैं – क्यूं रामाण करे । रामायण रामाण बन गई और झगड़ा महाभारत बन गया ।
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संकलन ग्रंथ
महाभारत सचमुच महाभारत है, एक विशाल ग्रंथ है। जो कुछ अच्छा लगा, उसके साथ जोड़ दिया गया। पहले कहा जाता था - व्यास का है महाभारत। आज यह कितने लोगों का है, कहा नहीं जा सकता। दस-बीस या न जानें कितने लोगों ने उसे बढ़ाया और इतना विशाल आकार दे दिया। जिसको जो चीज अच्छी लगी, उसने इसके साथ उसे जोड़ दिया। ऐसा लगता है- हिन्दुस्तान में जितना विचार था, जितना चिन्तन था, जितनी धर्म की धारणाएं थीं, समाज की धारणाएं थीं, उन सबका समावेश कर दिया गया। इसीलिए महाभारत में बहुत विरोधी बातें मिलती हैं। एक विचार से, एक लक्ष्य से जो लिखा जाता है,
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