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उत्तराध्ययन और धम्मपद
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दे दी? साम्यवाद को पढ़ रहे हैं, कहीं नास्तिक न बन जाएं, कम्युनिस्ट न बन जाएं। मैंने समाजवाद और साम्यवाद का गहरा अध्ययन किया तब अनेक जैन विद्वानों ने तो यह भी कह भी दिया कि मुनि नथमलजी (युवाचार्य महाप्रज्ञ) साम्यवादी बन गए हैं, नास्तिक हो गए हैं, लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। सत्य का विराट् दर्शन
हम समग्रदृष्टि से पढ़ें। यह उदारता जैनधर्म में सहज प्राप्त है। हम इस उदारता के साथ-साथ यह बात भी समझें-सम्यक्वाद का कथन कर, मिथ्यावाद का कथन करें और मिथ्यावाद का कथन कर सम्यकवाद की स्थापना करें। यह तुलनात्मक अध्ययन का नया दर्शन है। जो लोग तलनात्मक अध्ययन करना चाहते हैं, उन्हें विक्षेपणी कथा का सत्र जरूर पढ़ लेना चाहिए। आज तुलनात्मक अध्ययन की दिशा में पाश्चात्य और भारतीय चिन्तन परंपरा में काफी कुछ लिखा गया है, पर तुलनात्मक अध्ययन का एक समग्र दर्शन, जो इस सत्र में उपलब्ध है, वह बहुत महत्त्व का है। इस दर्शन के साथ हम उत्तराध्ययन, धम्मपद या किसी भी ग्रन्थ को पढ़ें तो सत्य का विराट् दर्शन होगा। जैसे योगीराज कृष्ण ने अर्जुन को अपने मुंह में विराट का दर्शन कराया था वैसे ही इस सूत्र के संदर्भ में हमें सत्य का विराट् दर्शन उपलब्ध हो सके तो तुलनात्मक अध्ययन और अन्वेषण की सार्थक परिणति का साक्षात् होगा।
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