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भेद में छिपा अभेद जिसने कमल का फूल तोड़ा, चोरी की, उसे कुछ नहीं कहा। मैंने फूल तोड़ा ही नहीं, केवल सुगंध ले रहा हूं, फिर भी तुम मुझे चोर ठहरा रहे हो?
तालाब का मालिक किसान था। उसने बहुत मर्म की बात कहीमहाराज! वह गृहस्थ था, संन्यासी नहीं। उसने भी चोरी की है। पर आप सुगंध किसकी आज्ञा से ले रहे थे? कमल की आज्ञा ली? मेरी आज्ञा ली?
नहीं।
क्या बिना आज्ञा किसी अन्य वस्तु का उपयोग करना चोरी नहीं है? फिर आप कैसे कह सकते हैं मैंने चोरी नहीं की? संन्यासी को अपनी भूल का अहसास हो गया असमानता की खोज : मौलिकता की खोज
महावीर की यह मौलिक स्थापना है-'पानी में जीव है'-जीव को. मारना हिंसा ही नहीं, चोरी भी है। आज हमें यह खोजना है. अध्यात्म के किस आचार्य ने क्या मौलिक अवदान दिया? क्या नई स्थापना की? हम लोग समानता की बात तक अटक जाते हैं। यह एक बहुत बड़ा भ्रम हो गया- सब साधु समान हैं, सब संप्रदाय समान हैं, सब धर्म समान हैं। इस केवल समानता-समानता की रट में मौलिकता उपेक्षित हो गई। कुछ बातें समान होती हैं तो कुछ बातें ऐसी भी होती हैं, जो धर्म-दर्शन की विशिष्टता को रेखांकित करती हैं। हम अपनी धारणा को स्पष्ट करें-समानता को खोजें तो साथ-साथ असमानता को भी साफ-साफ समझें। जब असमानता की बात समझ में आएगी, मर्म-बिन्दु समझ में आ जाएगा।
हम धम्मपद को पढ़ें, उत्तराध्ययन को पढ़ें, कुरान, बाइबिल और पिटकों को पढ़ें, इन सबको आदर के साथ पढ़ें। इसमें कोई कठिनाई नहीं है। जैनधर्म ने उदारता के साथ यह स्वीकृति दी-स्व-समय को जानो, पर-समय को भी जानो। यह नहीं कहा गया-दूसरों की पुस्तकें मत पढ़ो, उन्हें नष्ट कर दो। संवत् २००५ की बात है। आचार्यवर ने कहा-समाजवाद-साम्यवाद को जानना है। आज की मान्यताओं को हमें जान लेना चाहिए। दूसरों को आश्चर्य हुआ- आचार्यश्री ने यह आशा कैसे
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