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उत्तराध्ययन और धम्मपद
इस बात क महत्त्व का समझा रहे हैं। 'किसी को मत मारो - यह अहिंसा का सामान्य निर्देश है। अहिंसा के संदर्भ में इससे हटकर भी कुछ नई बातें कही गई हैं। महावीर ने कहा- पानी के जीव को कोई मार रहा है। वह हिंसा ही नहीं कर रहा है, चोरी भी कर रहा है
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अहिंसा : नई स्थापना
आज विज्ञान के क्षेत्र में एक शब्द बहुत प्रचलित है - नई स्थापना । यह शब्द तर्क और दर्शन के क्षेत्र में भी चलता रहा है। महावीर की पहली नई स्थापना है - पानी में जीवत्व की स्वीकृति। दूसरी नई स्थापना है - सचित्त पानी पीना हिंसा ही नहीं, चोरी भी है। प्रश्न प्रस्तुत हुआ- पानी पीने में पानी के जीव मरते हैं, वह हिंसा है लेकिन चोरी कैसे है? उसे चोरी कैसे कहा जा सकता है ? महावीर ने उत्तर दिया- वह चोरी भी है । प्रतिप्रश्न किया गया - एक व्यक्ति तालाब का पानी पीता है और वह तालाब के मालिक की आज्ञा लेकर पानी पीता है। वह चोरी कैसे है? यदि वह मालिक की आज्ञा के बिना पानी पिए तो उसे चोरी कहा जा सकता है, अन्यथा नहीं । महावीर ने कहा- जो व्यक्ति पानी पीता है, वह तालाब के मालिक की आज्ञा तो लेता है किन्तु जिन पानी के जीवों को अपनी प्यास बुझाने के लिए मार रहा है, क्या उन जीवों की भी आज्ञा लेता है? क्या वह व्यक्ति कहता है- 'भाई ! मैं तुम्हें मार रहा हूं, तुम मुझे आज्ञा दे दो ।' आज्ञा लिए बिना पानी के जीवों का आहरण चोरी है।
भूल का अहसास
संन्यासी जा रहा था। मार्ग में तालाब आ गया। तालाब में कमल के फूल खिले हुए थे । कमल के फूलों की भीनी-भीनी सुगंध आ रही थी । संन्यासी का मन सुंगध में उलझ गया। वह बहुत देर तक फूलों की सुगंध लेता रहा। तालाब का मालिक खड़ा खड़ा देख रहा था। उसने कहा- संन्यासी ! चोरी कर रहे हो ? यह सुनकर संन्यासी अवाक् रह गया। उसने सोचा- मैंने फूल को तोड़ा नहीं, चोरी कैसे हुई ? शायद भ्रम हो गया है। संन्यासी बोला- भाई ! जिसने तुम्हारा यह कमल तोड़ा था, वह तो मुझसे पहले ही चला गया। क्या तुमने उसको नहीं देखा था ?
मालिक बोला- हां, देखा था ।
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