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भेद में छिपा अभेद
बसा था ? हजार वर्ष पहले का आज कोई आदमी जीवित है? कितने मकान ऐसे हैं जो हजार वर्ष पहले बने हुए हैं? एक प्रवाह चल रहा है, जिसमें सैकड़ों पीढ़ियां अस्तित्व में आईं, विलीन हो गईं। उनका कहीं अता-पता नहीं है । एक व्यक्ति अपनी सात पीढ़ियों के नाम बता देगा लेकिन उससे आगे भी एक परंपरा और प्रवाह रहा है। वह कहां पहुंच पाएगा? कहीं उसे रुकना होगा, थमना होगा, क्योंकि प्रवाह अनादिकाल से चल रहा है और उस तक पहुंचना संभव नहीं है। महावीर ने कहा - इस प्रवाह के बीच में एक वह भी है, जो कभी नहीं बदलता, जो अचल है, अपरिवर्तनीय और स्थाई है।
प्रश्न है मंजिल का
भगवती सूत्र में कहा गया है- अथिरे पलोट्टई, थिरे नो पलोट्टई। जो अस्थिर है, प्रवाह है, वह बदलता रहता है। जो स्थिर है, वह कभी नहीं बदलता । इस सिद्धांत के संदर्भ में हम उत्तराध्ययन और धम्मपद को पढ़ेंगे तो हमारी यह दृष्टि स्पष्ट होगी - महावीर की पहुंच कहां थी? बुद्ध की पहुंच कहां थी? हम पहुंच को पकड़ें, अंतिम मंजिल को पकड़ें। बीच में हर बात मिल जाती है । कोई भी ऐसा तत्त्व नहीं है, जो बीच में न मिलता हो । दो विरोधी धाराएं भी मध्य में एक स्थान पर मिल जाती हैं। प्रश्न है - अंतिम मंजिल का । आखिर जाना कहां है? एक गाड़ी बम्बई से दिल्ली की ओर जा रही है और एक गाड़ी दिल्ली से बम्बई की ओर जा रही है। एक स्थान ऐसा आता है, जहां दोनों गाड़ियां मिल जाती हैं फिर दोनों की दिशाएं बिल्कुल भिन्न हो जाती हैं। हम केवल समानता के बिन्दु को पकड़ कर उलझ न जाएं। हमें समानता को भी समझना है, असमानता को भी समझना है। असमानता के बिन्दु क्या हैं? भेद कहां है? किस व्यक्ति ने कौनसी नई बात कही है? यह खोजना बहुत महत्त्वपूर्ण है।
अहिंसा : सामान्य निर्देश
अहिंसा के संदर्भ में एक सामान्य उपदेश है- 'किसी प्राणी को मत मारो ।' ढाई हजार वर्ष पहले महावीर ने कहा- सव्वे पाणा ण हंतव्वा । बुद्ध ने भी इस बात पर बल दिया। आचार्य हरिभद्र आचार्य भिक्षु आदि अनेक आचार्यों ने इस बात को बहुत मूल्य दिया। आज भी धर्म के प्रवक्ता
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